नवरात्रि के सातवें दिन हम देवी के जिस रूप की पूजा आराधना करते है, वो चामुंडी देवी है। इनका एक मंदिर कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर के चामुंडी नामक पहाड़ी पर स्थित है। आज मैं इस स्थान के अपने अनुभव को साझा करने जा रहा हूं और साथ ही बेहतर यात्रा करने के लिए कुछ सुझाव भी बताऊंगा।
बचपन से ही जब नवरात्रि के दौरान चामुंडेश्वरी देवी की पूजा होती थी मैं हमेशा अपनी माता से इनके बारे में पूछा करता था और माता मुझे चामुंडी देवी से सम्बंधित गाथाएं सुनाया करती थी। मुझे अपनी दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान चामुंडी पहाड़ी पर स्थित चामुंडेश्वरी देवी मंदिर के बारे में ज्ञात हुआ।
फ़िर बिना किसी विलंब के मैंने इस पवित्र और पूजनीय स्थान के दर्शन का विचार बनाया। अगले ही दिन मन्न में आस्था का भाव और हृदय में माता का स्वरूप लिए मंदिर मार्ग से प्रस्थान किया। जैसे-जैसे बस पहाड़ी पर ऊपर चढ़ रही थी, कुछ अत्यंत ही मनमोहक और आकर्षक दृश्य दिखाई दे रहे थे।
मूल रूप से चामुंडेश्वरी देवी मंदिर एक छोटा मंदिर हुआ करता था। बाद में मैसूर महाराजाओं ने इसके विस्तार में लगातार अपना योगदान दिया और वर्तमान मंदिर इसी का स्वरूप है। यह भी कहा जाता है कि यहां जानवरों की बलि दी जाती थी, जिसे 18 वीं शताब्दी में रोक दिया गया था। इस मंदिर की देखरेख और संरक्षण मैसूर के शासक किया करते थे।
यह मंदिर 18 महा शक्ति पीठों में से एक है। यह लगभग एक हजार साल प्राचीन है। इसका निर्माण सर्वप्रथम 12 वीं शताब्दी में होयसाला वंश के राजा ने करवाया था। 17वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के राजा ने इसके ऊपर के हिस्से का निर्माण कराया। वास्तव में चामुंडेश्वरी मां को वोडेयार साम्राज्य की कुलदेवी माना जाता हैं।
मंदिर के लिए 1000 कदमों का निर्माण डोड्डा देवराज वोडेयार ने 1659 में किया था। उनके शासनकाल के दौरान भगवान शिव के सवारी नंदी की विशाल मूर्ति का निर्माण भी किया गया था, जो 16 फीट ऊंचाई और 25 फीट की लंबी है। इसे भारत में नंदी जी की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक माना जाता है। नंदी की गर्दन के चारों ओर आपको मनोरम लटकती हुई घंटियाँ मिलेंगी।
1827 में, कृष्णराज वोडेयार तृतीय ने मंदिर का नवीनीकरण किया। उनके शासनकाल के दौरान ही मंदिर का प्रवेश द्वार बनाया गया था। कृष्णराज वोडेयार ने मंदिर के लिए सिंह के आकार का एक वाहन भी प्रस्तुत किया, जिसे ‘सिम्हा-वाहन’ कहा जाता है, और साथ ही कई अन्य वाहन भी आज वर्तमान में हैं जो अब धार्मिक और मंदिर के जुलूसों के लिए उपयोग किए जाते हैं। गर्भगृह के सामने महाराजा कृष्णराज वोडेयार तृतीय की 6 फीट ऊंची प्रतिमा भी है, जो ध्यान देने योग्य है। उनकी तीनों पत्नियों, रामविलास, लक्ष्मीविलास और कृष्णविलास की मूर्तियाँ भी उनके दोनों ओर स्थित हैं।
शायद बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि मैसूर शहर का नाम असल में दैत्य महिषासुर के नाम पर पड़ा। एक समय में वो यहां पर राज करता था। जैसे मैं आगे बढ़ा, मुझे महिषासुर की प्रतिमा दिखी। मैं थोड़ी देर वहां ठहरा। एक हाथ में सर्प और दूसरे हाथ में तलवार धारण किए रंग बिरंगी प्रतिमा आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। सब लोग फोटो खींचवाने को लगे हुए थे। मैंने भी कुछ तस्वीरें ली और आगे प्रस्थान किया। यहां कुछ किन्नर भी आपको देखने को मिल जाएंगे।
कुछ कदम चलने के बाद एक ऊंची सी आकृति दिखी। जी हां, अन्ततः मैं मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंच ही गया। अपने चप्पल उतारने के बाद मैं अंदर प्रवेश करने के लिए बढ़ा। मुख्य द्वार तक पहंचने के लिए लोहे के बाड़ों से घिरे रास्ते से गुजरना पड़ा। अंदर मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा थी जो काले पत्थर को तराश कर बनाया गया था। अष्ट भुजाओं से सुशोभित मां की प्रतिमा बड़ी ही मनमोहक प्रस्तुति दे रही थी। आस-पास कुछ पुजारी पूजा अर्चना कर रहे थे। दर्शन के बाद में आगे बढ़ा। भक्तो की ज्यादा भीड़ होने के कारण मुझे ज्यादा समय नहीं मिला कि मै थोड़ा रुक पाऊं।
दर्शन का समय – 7:30am – 2:00pm, 3:30pm- 6:00pm, 7:30pm -9:00pm ( हर शुक्रवार प्रातः 6:00 बजे से)
अभिषेक का समय – 6:00am -7:30am, 6:00pm- 7:30pm (हर शुक्रवार प्रातः 5:00 बजे से)।
बचपन से सिर्फ दक्षिण भारत के मंदिरों की आकृति पुस्तकों और पिक्चरो में देखता आया हूं। सामने से बस देखता ही रह गया। द्रविड़ियन शैली में निर्मित इस मंदिर ने मेरे मन को छू लिया। बस एक ही ख्याल आया कि उस समय शिल्पकार भी क्या हुनरमंद थे। सामने से मुझे मां की कुछ छोटी छोटी मूर्तियां और कुछ सिंह उकेरे हुए दिखे।
चामुंडी पहाड़ी समुद्र तल से लगभग 3,489 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ये पहाड़ियाँ मैसूर शहर से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित हैं। ये पहाड़ियाँ मैसूर शहर से लगभग 800 फीट ऊपर हैं।इन पहाड़ियों का उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों जैसे ‘स्कंद पुराण’ और ‘मार्कण्डेय पुराण’ में किया गया है। इन ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख त्रिमुत्रक्षेत्र नाम से किया गया है।
यह स्थान आठ पहाड़ियों से घिरा हुआ है और चामुंडी पहाड़ी उनमें से एक है। पहले, पहाड़ी को महाबलेश्वर मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है, के नाम पर ‘महाबलदरी’ के नाम से जाना जाता था। यह इस पहाड़ी का सबसे प्राचीन मंदिर भी है। बाद में, देवी चामुंडी के नाम पर इस पहाड़ी को ‘चामुंडी पहाड़ी’ के नाम से जाना जाने लगा।
आषाढ़ शुक्रवार और नवरात्रि यहां बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। आषाढ़ मास का हर शुक्रवार को पावन माना जाता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दिनों में 7वें दिन मैसूर के महाराजा द्वारा दान में दिए गए जवाहरात जिले के कोषागार से लाया जाता है और मां को सजाया जाता है। इन दोनों त्योहारों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन को आते है।
मान्यता है कि इस पहाड़ी पर दैत्य महिषासुर निवास करता था। एक बार मां चामुंडी और महिषासुर के बीच 9 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ जिसने मां ने दैत्य को हरा दिया। इसलिए मां “महिषासुर मर्दिनी” के नाम से भी प्रख्यात है। दूसरी कहानी यह प्रचलित है कि जब भगवान शिव सती जी के वियोग में उनको ले जा रहे थे तो इस स्थान पर सती जी के बाल गिरे थे।
मां चामुंडा की कहानी का वर्णन मार्कण्डेय पुराण में भी है। पुराण के अनुसार शुंभ और निशुंभ नाम के दो असुर भाई थे जिन्होंने कठिन तपस्या कर के ऐसी शक्तियां हासिल कर ली कि पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यो के साथ साथ देवताओं को भी परेशान करना शुरू कर दिया।
देवताओं के प्रार्थना करने पर पार्वती जी ने सुंदर कन्या का रूप धारण किया और पृथ्वी पर अवतरित हुई। उनकी सुंदरता से मोहित होकर शुंभ निशुंभ ने उन्हें अपने राज्य में बुलाने के लिए दूत भेजे। पार्वती जी के इनकार करने पर उन्हें बलपूर्वक ले जाने की कोशिश की गई जिस पर उन्होंने काली का रूप धारण किया और दोनों असुरो का वध किया। तभी से उनका नाम चामुंडेश्वरी पड़ा।
चामुंडेश्वरी देवी मंदिर से कुछ कदम चलने पर मुझे एक जगह दिखाई दी जहां से पूरा शहर दिखता है। यहां से आप आसानी से मैसूर महल देख सकते है। पास में कुछ दुकानें हैं जहां आप कुछ छोटी मोटी खरीददारी कर सकते है। बस ध्यान रहे कि मोलभाव करना ना भूले। हमने कुछ देर तक बाज़ार में कुछ समय बिताया लेकिन कुछ खरीददारी नहीं की। मंदिर से एक या दो किलोमीटर पहले नंदी जी की भी प्रतिमा है जो मैं देख नहीं पाया।
चामुंडेश्वरी देवी मंदिर पहुंचने के लिए मैसूर बस स्टैंड से हर 20 मिनट के अंतराल पर लगातार बसें चलती हैं। बस स्टैंड से मंदिर की दूरी 13 किमी है, जिसको पूरा करने में 30 मिनट का समय लगता है। वैसे एक अन्य तरीका टैक्सी भी है। टैक्सी या कैब बुक करके सीधे मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
जैसा मैं सोच कर आया था, यह यात्रा उससे भी ज्यादा लाभकारी और फलदाई रही। अगर आप कभी मैसूर यात्रा पर जाए तो इस स्थान को अपने सूची में अवश्य ही शामिल करे। अगर आपके मन में कोई भी सवाल है तो बेझिझक नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स में अपने विचार प्रकट करें।
एक अपील: चामुंडी पहाड़ी ‘नो प्लास्टिक जोन’ है। कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।
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Nicely written blog.. Very informative... Please keep on writing about your other experiences.
All the best
Thank you so much buddy. Yeah will keep writing. Just keep loving and supporting.😊😊🙏
प्रिय अभिषेक - तुमने अपने ब्लॉग का श्री गणेश माँ चामुंडेश्वरी के मंदिर से किया है, इस से अच्छा प्रारंभ क्या होगा. माँ की कृपा तुम पर सदैव बनी रहे, और तुम जीवन में अपने सब पुरुषार्थ प्राप्त करो.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बस आपका भी ऐसे ही आशीर्वाद बना रहे और मार्गदर्शन मिलता रहे।😊🙏
Very nice description along with the beautiful presentation..
All the best for your future assignments.👍
Thanks alot Sonali. Your words means alot. Just keep supporting.😊😊
नई चीज़ें सीखने को मिली, अच्छा लगा । Keep it up, guys! :)
जी बहुत बहुत शुक्रिया। बस ऐसे ही प्यार बरसाते रहिए।😊🙏
Very nice description of the place
Keep it up
Wish you all the luck
Thank you so much dear. Just keep loving like this.😊
Kick badhia janne ko mila
आखिरकार किक मिल ही गई।😂
Aapke sare vlogs bht hi shandaar h
जी बहुत बहुत धन्यवाद।
Nice. Keep it up. God bless u ....
Thank you so much chachu 🙌
अति सुन्दर विवरण!
मां की अनुकम्पा सदा बनी रहे।
ऐसे ही लिखते रहे ।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मां के साथ साथ आपका भी आशीर्वाद बना रहे। ऐसे ही प्यार और सहयोग देती रहिए। आप भी अपने काम में हमेशा सफलता प्राप्त करती रहे।
काफी उम्दा विश्लेषण!!
आगे की यात्राओं के लिए शुभकामनाएं
जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका। आपके योगदान के लिए शुक्रिया।