चाँद बावली – यह शब्द सुनते ही मन में क्या आता है? क्या यह आपको जाना पहचाना लग रहा है?
भारत देश का हर एक छोटे से छोटे कस्बे की अपनी एक अलग पहचान है। हम एक ऐसे राष्ट्र के वासी है जहां के कड़-कड़ में इतिहास और संस्कृति विराजमान है। ऐसा ही एक गांव “आभानेरी” है, जो राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है।
कहने को तो यह सिर्फ एक आम गांव की तरह है, लेकिन यहां स्थित है 8-9वीं में बना देश का प्राचीन बावली।
एक शाम जयपुर के हॉस्टल की छत पर बैठे हम चर्चा कर रहे थे कि अगले दिन क्या किया जाए। वैसे हमें भानगढ़ किला ( एशिया का सबसे डरावना स्थान) जाना था, पर हम उतने उत्सुक नहीं थे।
हम पहले ही जयपुर में कुछ किले घूम चुके थे। मेरे साथी विपिन ने मुझे चाँद बावली का एक चित्र दिखाया। उसकी बनावट को देखकर मैं काफी उत्सुक हो गया और झट से वहां जाने को तैयार हो गया।
राजस्थान के साथ-साथ देश के कई हिस्सों में बावली देखने को मिल जाएंगे। पानी की समस्या से निजात पाने के लिए उन दिनों बावली की खुदाई करके निर्माण कराया जाता था।
चाँद बावली बेशक राजस्थान का, या यूं बोले कि भारत का एक प्राचीनतम और सुरक्षित बावली है। इसका निर्माण निकुंभ साम्राज्य के शासक चाँद ( या चंद) ने कराया था, जो उस वक़्त आभानेरी पर शासन कर रहे थे। इसका इतिहास आपको 8-9वीं के आसपास ले जाएगा।
मतलब उस समय भी ऐसे रहस्यमयी ढांचे का निर्माण करवाना भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि रही होगी। जानकारी के लिए बता दूं कि इसका निर्माण ताज महल से भी प्राचीन है। राजा चांद के नाम पर ही इसका नाम चाँद बावली पड़ा।
यह भी दावा किया जाता है कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी, राजा चांद के पूर्वज थे। लेकिन इस तथ्य के कोई पक्के सबूत प्राप्त नहीं हुए है।
चाँद बावड़ी की योजना वर्गाकार है। 30 मीटर या 100 फ़ीट गहरे इस आकृति का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा की ओर है। नीचे उतरने के लिए इसमें तीन तरफ से दोहरे सोपान की व्यवस्था है, जबकि इसके उत्तरी भाग में स्तंभों की एक छोटी दीर्घा बनी हुई है, जहां महिषासुरमर्दिनी और गणेश जी की प्रतिमाएं स्थापित है। अंदर जाना वर्जित है।
इसका पार्श्व बरामदा और प्रवेश मंडप मूल योजना का हिस्सा नहीं था। इसका निर्माण बाद में कराया गया था। उन दिनों आभानेरी के लोग यहां गर्मी से निजात पाने के लिए आते थे। बावड़ी के अंदर का तापमान बाहर के मुक़ाबले 5 डिग्री कम होता था।
आप चौक गए ना? मैं भी आपकी तरह हैरान रह गया जब मुझे पता चला कि इसमें 3500 सीढ़ियां हैं। इन सीढ़ियों को इस प्रकार संयोजित किया गया है कि यह एक अलग ही रूप प्रदान करती हैं। यहां अलग-अलग तरफ से बहुत सी अच्छी तस्वीरें खींचने को मिल जाएंगी।
बावली के पास लगे बेड़े को पकड़कर मैं नीचे देखा। पानी के ऊपर हरी काईं और कबूतरों का फड़फड़ाना और इसका शांत वातावरण आपको प्राचीन काल की थोड़ी झलक देने की कोशिश करेगा।
इसमें कुल 13 मंजिल हैं और ऊपर से नीचे आकृति सकरी होती चली गईं है। दिखने में यह सममिति है, जिससे और आकर्षक दिखाई देता है।
बावली से 70-80 मीटर की दूरी पर आपको उचाई पर स्थित एक गुंबदाकार मंदिर दिखाई देगा। यह मंदिर हर्षत माता को समर्पित है। हर्षत माता को खुशी और हर्ष की देवी माना जाता है।
इस गांव का नाम भी इसी हर्षत माता मंदिर के नाम पर पड़ा। “आभा” मतलब “छटा”। मान्यता है कि हर्षत माता इस गांव पर अपनी आभा बिखेरती हैं, अतः इसका नाम आभानेरी पड़ा।
हर्षत माता मंदिर के निर्माण की कोई वास्तविक तिथि नहीं ज्ञात है। इतिहासकारों के अनुसार चांद बावली के निर्माण के आसपास ही इसका निर्माण हुआ। इसका निर्माण भी निकुंभ साम्राज्य के राजा चांद ने 8- 9वीं शताब्दी में करवाया था। इस्लामिक शासक महमूद गजनवी के हमले ने इस मंदिर के वास्तविक ढांचे को नष्ट कर दिया।
महामेरू शैली का यह पूर्वाभिमुख मंदिर कुछ ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर योजना में पंचरथ गर्भगृह है। इसके आगे के भाग में स्तंभों पर आधारित मंडप है। सिर्फ मुख्य श्राइन और एक खुला हुआ मंडप ही जीवित अवस्था में है।
इसके ऊपर का भाग कभी भव्य हुआ करता था, किन्तु हमले के बाद ये गुंबदाकार बनाया गया। बाहरी दीवार पर भद्र ताखों में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी हुई है।
हर्षत माता मंदिर के गर्भगृह में हर्षत माता की मूर्ति विराजमान है। ऊपर जगती के चारों तरफ ताखों में रखी सुंदर मूर्तियां धार्मिक एवं लौकिक दृश्यों को दर्शाती है, जो कि इस मंदिर कि मुख्य विशेषता है।
मंदिर के पुजारी से बात करने पर पता चला कि दशहरा के 10 दिन पहले, जब नवरात्रि को पूजा अर्चना शुरू होती है, उस समय यहां 3 दिन के लिए आभानेरी मेला लगता है।
पुजारी ने ये भी बताया कि अप्रैल के माह में भी एक मेला लगता है। अगर आप इन महीनों माते हैं तो इसकी आभा देखते ही बनती है।
हर्षत माता मंदिर में रोज सुबह शाम आरती की जाती है। उन दिनों 3 दिन के लिए बावली खुली होती है, जहां स्थानीय लोगो के बीच कूदने की प्रतियोगिता भी होती है।
आभानेरी राजस्थान के दौसा जिले में है। जयपुर से आभानेरी की दूरी 90 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के निम्न मार्ग हैं।
सबसे सुगम तरीका रेल मार्ग ही है। आप जयपुर से बांदीकुई के लिए ट्रेन ले सकते हैं। दिनभर में बांदीकुई के लिए बहुत सारी ट्रेनें नियमित अंतराल पर हैं। फिर बांदीकुई रेलवे स्टेशन से आप कोई भी ऑटो रिक्शा ले सकते है जो आपको तय किये हुए रेट में दोनों तरफ की सैर करा देगा। बांदीकुई से आप मेहंदीपुर वाले बालाजी के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।
चाँद बावली का निकटतम एयरपोर्ट जयपुर अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश विदेश के सभी स्थानों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। आप हवाई अड्डे से टैक्सी बुक कर सकते है, या बस भी ले सकते हैं।
आप देश के किसी भी हिस्से से बस द्वारा जयपुर पहुंच सकते है। जयपुर बस स्टॉप से आपको कोई भी सीधा साधन नहीं मिलेगा। जयपुर से दो तरीके अपनाया जा सकता है।
पहला – पहले जयपुर से सिकंदरा के लिए लोकल बस लें और फिर वहां से टैक्सी द्वारा आभानेरी पहुंचे।
दूसरा – जयपुर से गूलर के लिए बस लिए जाए फिर एक घंटे की ट्रेकिंग करके आभानेरी पहुंचा जाए।
आप जयपुर से सीधा आभानेरी के लिए टैक्सी ले सकते हैं, पर वो आपको थोड़ा महंगा पड़ सकता है।
1- चाँद बावली कब खुला रहता है?
चांद बावली हफ्ते के सभी दिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
2- चाँद बावली का टिकट कितने का है?
इसका टिकट भारतीय के लिए मात्र ₹25 रुपए है।
3- बावली क्या होता है?
पानी की समस्या से निजात पाने के लिए कुएं की तरह थोड़े से बड़े आकार के बावली बनाए जाते थे, जिनमें नीचे जाने के लिए सीढ़ियां होती है।
4- चाँद बावली कहां स्थित है?
जयपुर से 90 किलोमीटर दूर दौसा जिले के एक छोटे से गांव आभानेरी में चांद बावली और हर्षत माता मंदिर है।
5- चाँद बावली कितना गहरा है?
चांद बावली की गहराई लगभग 20 मीटर है। इसमें कुल 13 मंजिल है। यह देश के प्राचीन और विशाल बओलियो में से एक है।
6- चाँद बावली किसने बनवाया?
इस विशाल आकृति का निर्माण निकुंभ साम्राज्य के राजा चांद ने करवाया था।
हमने रेल मार्ग लेना उचित समझा। दोपहर के 12 बजे जयपुर से ट्रेन लिए जिसने डेढ़ घंटे में हमें बांदीकुई उतार दिया। वहां से हमने एक ऑटो रिक्शा लिया जिसने सकरी गलियों और उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए हमारे गंतव्य को पहुंचा दिया।
बावली में प्रवेश करने पर आपको उसकी भव्यता का अंदाज़ा नहीं लगा सकते। जैसे ही मैं प्रवेश कर के उसके करीब पहुंचा तो मुंह और आंखे खुली की खुली रह गईं।
मैंने एक दो बावली देखी है, लेकिन इतना विशाल और भव्य बावली पहली बार देख रहा था।
कुछ तस्वीरें खींचने के बाद मेरी नजर पंक्ति में रखे मूर्तियों पर पड़ी जो काफ़ी प्राचीन प्रतीत हो रही थीं। एक गाइड जापान से आए हुए लोगों को बावली के इतिहास और भूगोल से रूबरू करा रहा था।
वहां से निकलते हुए हम मंदिर की ओर अग्रसर हुए। चूंकि मंदिर थोड़ी ऊंची पर है, हमें कुछ ऊंची सीढ़ियां चढ़नी पड़ी। मन में हर्ष लिए मैंने हर्षत माता के दर्शन किए। पुजारी ने हमें प्रसाद दिया और थोड़ी गुफ्तगू हुई।
तभी मेरी नज़र एक छोटे गिलहरी पड़ पड़ी जो हमे घूर रही थी, मैंने विपिन से धीरे से बोला कि भाई एक तस्वीर इनकी भी निकाल ले। अंत में हम वापस रेलवे स्टेशन की ओर बढ़े जहां से हमे जयपुर की ट्रेन लेनी थी।
उम्मीद करता हूं कि मैं आपको एक ऐसे जगह के बारे में पूरी जानकारी देने में सक्षम हो पाया हूं। ऐसी ही बहुत सी छुपी हुई जगहें हमारे देश के हर एक कोने में स्थित हैं। आपको यह लेख कैसा लगा, टिप्पणी करके जरूर बताइएगा।
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