भारत विविधताओं का देश है। देश में कई ऐतिहासिक और रोचक महल और किले है, और किलों और महल की बात हो रही है तो हम राजस्थान को कैसे भूल सकते है। राजस्थान को भारत की आन और राजपूतों की शान माना जाता है। राजस्थान के शाही महल और ठाठ बाठ वाली मेहमाननवाजी तो पूरे विश्व में भली भांति मशहूर है।
राजस्थान एक इकलौता ऐसा राज्य है, जिसने पूरे विश्व के पर्यटकों को इस कदर प्रभावित किया है कि लोग देश के किसी भी क्षेत्र में जाने के बजाय राजस्थान जाने को ज्यादा तवज्जो देते है। राजस्थान में कई महल हैं। एक ऐसा ही महल है – जयपुर में स्थित हवा महल , जो सालभर देशी के साथ साथ विदेशी पर्यटकों से भी खचाखच भरा रहता है।
हवा महल के निकट मेट्रो स्टेशन के निर्माण कार्य प्रगति पर होने के कारण मुझे यहां तक पहुंचने के लिए काफ़ी दिक्कतों से जूझना पड़ा। दोपहर की गर्मी, धूल मिट्टी, पसीना और भयंकर ट्रैफिक जाम। इन सबको मात देते हुए मैं कुशलतापूर्वक मुख्य परिसर के सामने पहुंचा।
राजस्थान के जयपुर में स्थित इस शानदार महल का निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह के पोते महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी द्वारा सन् 1799 में करवाया गया था। ऐसा मान्यता है कि एक बार वो राजस्थान के झुंझनू शहर में महाराजा भूपाल सिंह से मिलने गए हुए थे। वहां उनके द्वारा निर्मित खेतड़ी महल महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी को भा गई।
वापस लौटते ही उन्होंने अपने प्रमुख वास्तुकार उस्ताद लालचंद जी को एक वैसा ही महल के निर्माण कार्य के लिए नक्शा और जल्द से जल्द निर्माण कार्य प्रारंभ करने का आदेश दिया। वो निर्माण के हर एक चीज को खुद बारीकी से निरीक्षण करते थे। यह रॉयल सिटी पैलेस के विस्तार के रूप में बनाया गया था।
मैं तो बाहर से ही उसके आकार को देखकर अचंभित सा था। तभी विपिन ने पूछा कि इसका प्रवेश द्वार दिख नहीं रहा। मैं हस्ते हुए बोला – क्या भाई हरदम मजाक के ही मूड में रहते हो। वास्तव में मैं भी प्रवेश द्वार को लेकर असमंजस में पड़ गया। एक बुजुर्ग व्यक्ति से पूछने पर उन्होंने एक छोटे से दरवाज़े कि तरफ इशारा किया। अच्छा तो इधर से अंदर जाना है।
राजस्थान के राजपूतों द्वारा शासित प्रदेशों में उन दिनों पर्दा प्रथा का प्रचलन था। सभी महिलाएं इसका पालन करती थी। राज्य की शाही राजपूत महिलाओं के द्वारा भी इसका बखूबी पालन किया जाता था। उन्हें दैनिक हलचल, उत्सवों आदि को सार्वजनिक रूप से देखने की इजाजत नहीं थी। अतः इस महल का निर्माण करवाया गया जिसकी खिड़कियों से वो बाहर की हलचल को आसानी से देख पाती थीं।
खिड़कियों को झरोखा भी कहा जाता है। इसमें हर एक झरोखे को बारीक कलाकृति से सजाया गया है। शाही राजघरानों की महिलाओं के दैनिक जीवन की हलचल का अवलोकन करने हेतु इसका निर्माण करवाया गया था।
एक पल के लिए आपको यह मधुमक्खी के उल्टे छत्ते जैसा प्रतीत होगा। इतनी बारीकी से एक ऐसे महल का निर्माण करना जिसका कोई आधार ही ना हो, अपने आप में विचित्र है।
यह एक पांच मंजिला इमारत है जिसकी ऊंचाई 15 मीटर है। पिरमिडनुमा यह महल, मुगल और राजपूत वास्तुकला के मिश्रण का एक उत्कृष्ट नमूना पेश करता है। इसके निर्माण में लाल और गुलाबी बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
देखने में यह भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट के समान दिखाई देता है। माना जाता है कि महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी भगवान श्रकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। शायद इसीलिए उन्होंने अपनी भक्ति को इस महल के बनावट में उतार दिया है।
जैसे ही मैं अन्दर पहुंच तो पाया कि कुछ महिलाएं राजस्थानी परिधान पहने और हाथ में मटका लिए फोटो खींचवाने के लिए कतार में खड़ी थी। राजस्थानी परिधान मुझे बहुत अच्छा लगता है, इसलिए मैंने याद के तौर पर एक राजस्थानी पगड़ी खरीद ली। मुख्य परिसर में प्रवेश के बाहर एक शिलालेख है जिसपर महल की संरचना और छोटा सा इतिहास अंकित है।
मुख्य परिसर में प्रवेश करते ही एक फव्वारे ने मेरा स्वागत किया। मैंने पाया की दाहिनी तरफ कुछ लोगों का झुंड एक कमरे की तरफ बढ़ता जा रहा है। मै भी आगे बढ़ा और पाया कि कमरे में महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी की प्रतिमा है, जो कि एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। प्रतिमा में भी वहीं शान और शौकत जिसके बारे में सुना और मूवीज में देखा था। यह पूर्णतया जीवंत सी लग रही थी। बाजू में तलवार, माथे पर मुकुट, ताव देती मूंछ और आंखो में निर्भीक चमक। कुछ ऐसे ही थे हमारे राजपूत राजा जिनकी शान के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं।
मुझे ठीक से याद है कि जब विपिन महाराजा सवाई प्रताप सिंह की प्रतिमा की तस्वीर ले रहा था तो पास खड़े एक कर्मचारी ने बोला कि आपने ठीक से तस्वीर नहीं ली। देखिए उनके चेहरे पर प्रकाश की किरण पड़ रही है। कृपया पुनः कोशिश करिए। आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते है कि उनके हृदय में अपने राजाओं के लिए कितना सम्मान है।
पहली मंजिल पर शरद मंदिर है, जिसे उत्सवों ले लिए प्रयोग किया जाता था। यहां होली और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था। मैं सोच सकता था कि कैसे रंगोत्सव का आयोजन होता होगा। दूसरी मंजिल का नाम रतन मंदिर है, जहां पर रंगीन शीशे से दीवालों को सजाया गया है। लाल, हरा, पीला और गुलाबी आदि रंगों से जब सूर्य का प्रकाश परिवर्तित होकर आती है तो एक खूबसूरत सी रंगीन छवि दिखाई देती है। यहां पर फोटो लेने के लिए लोगों की होड़ लगी हुई थी। मौक़ा पाकर हमने भी एक दो फोटो खींच लिए।
इमारत की तीसरी मंजिल पर स्थति है विचित्र मंदिर। यह वो स्थान है जहां उस समय में सभी को जाने की इजाजत नहीं थी। महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी यहां अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण की आराधना किया करते थे।
इसके आगे चौथे मंजिल को प्रकाश मंदिर कहा जाता है। प्रकाश मतलब रोशनी। शायद इसीलिए इसको प्रकाश मंदिर बोला जाता है।
पांचवी मंजिल हवा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह इमारत की सबसे ऊंची चोटी है। यहां पहुंचने में आपको एक सामान्य दिन में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि यहां ऊपर काफ़ी भीड़ होती है। ऊपर कुछ सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति की गई है जो बारी बारी से लोगों को ऊपर आने जाने का निर्देश देते है।
ऊपर पहुंचकर मैंने एक छोटा कोना खुद के लिए सुरक्षित कर लिया। मैं ऊपर से सिटी पैलेस, जंतर मंतर और नहरगढ़ किला साफ़ साफ़ देख सकता था। यह हवा का झोंका आपके चेहरे की सारी थकान मिटा देगा और इसी हवा मंदिर के कारण इस इमारत का नाम “हवा महल” पड़ा।
आश्चर्य हुआ ना? मैं भी हुआ था जब पता चला कि इस महल में 953 झरोखें है। आप मानोगे नहीं, कुछ झरोखें इतने छोटे और प्यारे लगते है ना कि आपका दिल छलांग मारेगा। हर झरोखे में छोटी छोटी कुण्डी लगी है। यहां हर आकार के झरोखे है, छोटे, बड़े, जालीदार, पुरदानुमा, रंगीन आदि।
मैंने बहुत से झरोखों से बाहर देखा। बाहर की रोड, दुकानें, कैफे आदि साफ़ साफ दिख रहे थे। इनको इस कदर बनाया गया था कि शाही राजघरानों की महिलाएं बिना किसी रुकावट के पूर्णतया बाहर की हलचल देख सकें। इन झरोखों से ठंडी हवा भी लगातार आती थी जिससे उन्हें भीषण गर्मी से निजात भी मिलता था।
हवा महल में प्रवेश पिछे की तरफ सिटी पैलेस से होकर एक शाही दरवाजे के माध्यम से किया जाता है। यह दरवाजा एक विशाल आंगन में खुलता हैं। जिसके तीनों ओर एक दो मंजिला इमारत है। और जो हवा महल के पूर्वी भाग से जुड़ी हुई है। महल के आंगन में एक पुरातत्व संग्रहालय भी है। आसपास कुछ खाने पीने की दुकानें और राजस्थानी परिधान और निशानी के तौर पर कुछ तोहफे खरीदने के अच्छे विकल्प हैं।
हवा महल की संस्कृति और वास्तुकला विरासत हिन्दू राजपूत वास्तुकला और इस्लामिक मुग़ल वास्तुकला का यथार्थ प्रतिबिंब है। राजपूत वास्तुकला में गुम्बदाकार छतरियां स्तंभ कमल पुष्प प्रतिमा के आकार सम्मिलित है। जबकि मुग़ल वास्तुकला में कारीगरी के महीन काम द्वारा पत्थरों को जोडना और मेहराब सम्मिलित हैं।
सप्ताह से सभी दिन सुबह 9 बजे से लेकर शाम के 5 बजे तक आप घूम सकते है
टिकट
भारतीय पर्यटक | ₹50 |
भारतीय विद्यार्थी | ₹5 |
विदेशी पर्यटक | ₹200 |
विदेशी विद्यार्थी | ₹25 |
हवा महल में कुल 953 खिड़कियां है, जिनको झरोखा भी बोला जाता है।
चूंकि इसमें 953 झरोखें है, जिनमें से लगातार ठंडी हवा महल के अंदर के माहौल को खुशनुमा बनाती है। इसके ऊपरी मंजिल को हवा मंदिर बोलते है। इसीलिए इसका नाम हवा महल पड़ा।
हवा महल का निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह के पोते महाराजा सवाई प्रताप सिंह जी द्वारा सन् 1799 में करवाया गया था।
शाही राजघरानों की महिलाओं के दैनिक जीवन की हलचल का अवलोकन करने हेतु इसका निर्माण करवाया गया था।
सन् 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स और रानी विक्टोरिया ने जयपुर का दौड़ा किया। उनकी मेहमाननवाजी के लिए महाराजा रामसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया। उस वक़्त लॉर्ड अल्बर्ट ने इसको पिंक सिटी बोला था। तबसे यह शहर इसी नाम से जाना जाता है।
बिल्कुल, आप अंदर प्रवेश कर सकते है।
हवा महल अपने 953 झरोखों के साथ साथ अद्भुत बनावट और बिना नींव के इतनी बड़ी इमारत खड़ी करने को लेकर लोगों में चर्चित है।
राजस्थान एक गर्म प्रदेश है, इसलिए मैं अपनी सर्दी के मौसम में जाने की सलाह दूंगा। वैसे तो यहां साल भर जाया जा सकता है।
देश की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 270 किमी और आगरा से दूरी 237 किमी है। प्राइवेट बस के अलावा राज्य परिवहन निगम की बस भी लगातार अंतराल पर संचालित होती है।
मशहूर पर्यटन केंद्र होने के कारण जयपुर देश के सभी कोनों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। जयपुर में तीन मुख्य स्टेशन है – गांधीनगर, दुर्गापुरा और जयपुर जंक्शन।
“पैलेस ओंन व्हील्स” नाम की एक शाही ट्रेन भी दिल्ली से चलती है, जो एक सप्ताह में राजस्थान के मुख्य जगहों का सैर कराती है। यह ट्रेन जयपुर, सवाई माधोपुर, चितौड़गढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर और आगरा जैसे शहरों को जोड़ती है।
जयपुर का संगनेर हवाई अड्डा जहां से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ाने होती है, मुख्य शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। यह देश विदेश के तमाम शहरों से भली भांति जुड़ा हुआ है।
राजस्थान के कड़ कड़ में विरासत विराजमान है। हर महल और किले की एक अनोखी कहानी है। बाकी राजस्थानी मेहमाननवाजी और शानोशौकत से तो आप बेशक परिचित होंगे ही।। इनकी तो टैगलाइन भी है -” पधारो म्हारो देश “
तो जाइए कभी राजस्थान, जाने कब क्या दिख जाए।
मेरे लिए तो यह यात्रा वाकई में बहुत कुछ सीखने वाला रहा। बहुत कुछ ऐसा अनुभव किया जिसको मैंने एक यादों की किताब में समेट के रख दिया है। राजस्थान ने अपनी संस्कृति और इतिहास को ऐसे संजोकर रखा है कि जो भी घूमने जाता है वो वहीं के भाव में ढल जाता है।
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