भारत

उत्तराखंड का कोट भ्रामरी मंदिर जहाँ हिमालय का 360° नज़ारा दिखता है।

कोट भ्रामरी मंदिर की यात्रा मेरे हालिया बैजनाथ यात्रा का एक हिस्सा है। यह देवी के एक रूप भ्रामरी देवी और नंदा देवी को समर्पित एक मंदिर है, जिससे सम्बन्धित कई किवदंतियां और मान्यताएं है। यह लेख आपको उन सबसे रूबरू कराएगा।


बैजनाथ यात्रा के आखिरी दिन जब हम सुबह सुबह नाश्ते पर बैठे हुए थे, तभी हमारे होटल के मालिक हमारे पास आए और बोले, ” तो, घूम लिया पूरा? कैसा लगा हमारा बैजनाथ?

हमारे बताए जाने पर कि हमने बस बैजनाथ मंदिर और नदी के किनारे खेत खलिहानों में ही घूमा। उन्होंने बोला, “आप कोट भ्रामरी मंदिर नहीं गए?”


सच कहूं तो हमें इस मंदिर के बारे में बिल्कुल भी ज्ञात नहीं था। चलो अच्छा हुआ उन्होंने बताया और इसके लिए तो उनका शुक्रगुजार होना बनता है। जैसा कि उन्होंने मंदिर का वर्णन किया, मेरी तो आंखे लालायित होने लगी थी। बस मन ही मन सोच जा रहा था कि काश कोई जादू की छड़ी होती जिसको घुमाते ही में उस स्थान तक पहुंच जाता। खैर ऐसा तो मुमकिन नहीं था, इसलिए हमें मानव द्वारा बनाए हुए राह से गुजर कर जाना था।

हम नाश्ते के पश्चात ही मंदिर के लिए बढ़े।

3 किमी की छोटी ट्रेक्किंग

पहाड़ों के मेरे लगाव के बारे में बताने की आवश्यकता नहीं है, फिर भी बता दूं कि पहाड़ को अगर मैं अपना ही एक हिस्सा बोलूँ तो गलत ना होगा।

हमारे होटल के बिल्कुल बगल से एक छोटा सा पथरीला रास्ता था, जो जाकर ठीक मंदिर पर खत्म होता है। मुझे लगा कि जब मैं हिमाचल प्रदेश के सबसे कठिन ट्रैकिंग में से एक खीरगंगा ट्रैकिंग कर सकता हूँ तो ये 3 किमी की ट्रैकिंग कौन सी बड़ी बात है। 

बीच रास्ते से पहाड़ो का दृश्य

पर मेरी यह धारणा एक किलोमीटर चलकर ही टूट गई। पिछले 8 महीनों से यात्रा न करने और कम शारीरिक गतिविधि करने का नतीजा साफ दिख रहा था। खैर, एक छोटा सा विश्राम लेकर पुनः चलना प्रारंभ किया। अबकी पूरे जोश के साथ कि अब सीधे मंदिर पहुंचकर ही रुकना है। एक किलोमीटर की लगातार चढ़ाई की और हमें एक मंदिर दिखा।

हमने सोचा चलो आखिर पहुंच ही गए। हमारी भावनाएं एक बार फिर आहत हुई जब पास से गुजर रहे एक स्थानीय युवक ने बताया कि ये मंदिर नहीं है, आपको थोड़ा और चढ़ाई करनी पड़ेगी। 

कोट भ्रामरी मंदिर के रास्ते में छोटा सा गाँव

इतना सुनकर विपिन बोला, “भाई! एक ठहराव लेते है फिर ट्रेकिंग जारी करते है।” हम लोग बैठ गए और पानी पीने लगे और सामने का नज़ारा मानिए हमें उकसा रहा हो कि थोड़ा ऊपर आइए जनाब आपको और अच्छा नज़ारा दिखेगा। ऐसा सोचकर नसों में मानो एक जोश सा आ गया। थोड़ा आराम करने के पश्चात हम फिर तरोताजा मन से अपने पथ पर अग्रसर हुए।

अनजाने राहों का साथी

जब हम मंदिर के लिए निकले तो होटल के मालिक का पालतू कुत्ता (टाइगर) भी हमारे पीछे-पीछे चलने लगा। हमें लगा कि कुछ दूर तक चलने के बाद वह फिर से अपने मालिक के पास लौट जायेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। वो लगातार हमारे आगे-आगे चलता गया और हमारा मार्गदर्शन करता गया। जहां भी हम रुकते वो भी विश्राम ले लेता और फिर हमारे साथ ही यात्रा जारी कर देता। हमने कई बार उसको वापस जाने को कहा पर वो कहां हमारी बात मानने वाला था। 

हमारा दोस्त टाइगर जिसमे हमारा मंदिर तक मार्गदर्शन किया

एक वक़्त को मुझे काफी हैरानी हुई कि बिना पानी पिए वो ऐसे कैसे लगातार ऊपर चढ़ता जा रहा है। खैर अंततः उसने हमें हमारी मंजिल तक पहुंचा ही दिया। और शायद इसीलिए मैं इनको अनजानी राहों का सच्चा साथी अथवा मार्गदर्शक बोलता हूं। 

देवी दर्शन और मंदिर का इतिहास

जब कुछ गज़ की दूरी बाकी रह गई और मंदिर का प्रवेश द्वार साफ दिखने लगा तो मानो पैरों में ऊर्जा का संचार हो गया था। परिसर में प्रवेश करते ही कुछ पल का आराम लिया और फिर मंदिर के अंदर गर्भगृह में माता कोट भ्रामरी और नंदा देवी के दर्शन किए। पास ही एक पुजारी मंदिर की गौरव गाथा का बखान कर रहे थे जिसको सुनने में मैंने खास दिलचस्पी दिखाई। 

मंदिर गर्भगृह में कोट भ्रामरी और नंदा देवी की प्रतिमाएं

इतिहासकारों के अनुसार 2500 बीसी से लेकर 700 एसी तक कुमाऊं घाटी पर कत्यूरी राजाओं का शासन था। आज जिस स्थान पर मंदिर स्थापित है वहां कभी कत्यूरी शासकों द्वारा स्थापित किला हुआ करता था। ऐसा भी मानना है कि कत्यूरी और वंशावली राजाओं की कुलदेवी भ्रामरी और नंदा देवी थी।

वर्तमान मंदिर आधुनिक शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण कब हुआ, किसने करवाया, सब एक रहस्य बना हुआ है। महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद जी ने अपने ग्रंथ “ध्रुवस्वामिनी” में इस जगह का उल्लेख किया है।

नंदा और भ्रामरी देवी की साथ में होती है पूजा

भ्रामरी देवी का विवरण दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय से मिलता है। ऐसा माना जाता है कि भ्रामरी देवी की पीठ की पूजा होती है और देवी का मुकुट और चेहरा किसी को नहीं दिखाया जाता है। मात्र पुजारी को ही यह हक है कि वो देवी का सम्पूर्ण स्वरूप देख सकते है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि यदि इसका पालन नहीं किया गया तो सम्पूर्ण कत्यूर घाटी को तांडव और तबाही का साक्षी होना पड़ेगा। 

पास ही निकट एक गांव है जिसका नाम झालीमाली है। इसके बारे में जनश्रुति है कि जब चंद शासक नंदा जी की शिला को गढ़वाल से अल्मोड़ा ले जा रहे थे तो उन्होंने इस गांव में रात्रि विश्राम किया। अगले दिन सुबह जब शिला उठाने की कोशिश की तो उठाना तो दूर उसको हिलाना भी नामुमकिन साबित हुआ।

लोगों ने माना की मां का हृदय यहां रम गया है। इसलिए वही उसकी स्थापना कर दी गई। कई वर्षों तक वहीं पूजा पाठ होता रहा फिर बाद में भ्रामरी देवी के साथ नंदा देवी की स्थापना की गई और दोनों की साथ ने पूजा अर्चना होने लगी। 

प्रचलित किवदंतियां और मान्यताएं

कहा जाता है कि कत्यूर घाटी में एक समय अरुण नामक असुर का प्रकोप था। उसको वरदान प्राप्त था कि ना उसको कोई देवता मार सकता है ना ही कोई मनुष्य और ना ही किसी शस्त्र से उसको मारा जा सकता है।

उसका तांडव और अत्याचार लगातार बढ़ता ही जा रहा था। अंततः उसका संहार करने के लिए भगवती मां ने भ्रमर (भौंरा) का रूप लिया और इस दैत्य का वध करके लोगों को इसके भय से मुक्ति दिलाई। इसलिए यहां भगवती मां की भ्रामरी रूप में पूजा होती है।

कोट भ्रामरी मंदिर का परिसर

एक मान्यता यह भी है कि जब आदि गुरु शंकराचार्य जी बद्रीनाथ के अपने पथ पर अग्रसर थे, तो उन्होंने इस स्थान पर विश्राम किया था। 

नोट: उपर्युक्त किसी भी तथ्य या मान्यता की पुष्टि हम नहीं करते है। सभी जानकारी शोध और इतिहासकारों के अनुसार है।

मंदिर प्रांगण से पहाड़ों का 360° नज़ारा

जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो था मंदिर का वातावरण और वहां से सम्पूर्ण घाटी का 360° का मनमोहक दृश्य। मैं तो दर्शन करने के पश्चात ऊपरी मंजिल पर गया और मनमोहक नज़ारे का लुत्फ उठाने लगा। ऐसा लग रहा था मानो जैसे मैं प्रकृति की गोद में हूं। मैंने कुछ तस्वीरें खींची और वही नज़ारे की देखते हुए बैठ गया।

हल्की सी धूप, धीरे-धीरे बहती हवा, दूर-दूर तक फैले पहाड़, घुमावदार घाटी, पहाड़ी खेत, और एक अजीब सा सन्नाटा। कुछ ऐसे ही माहौल का अनुभव किया मैंने इस मंदिर में, जिसने मेरे हृदय में एक खास जगह बनाई। सामने का नज़ारा इस बात का एहसास दिला रहा था कि ट्रैकिंग करते समय जितनी भी तकलीफ उठानी पड़ी वो इस नज़ारे के सामने बिल्कुल फीका है। 

प्रमुख त्यौहार

चैत्र मास (मार्च/अप्रैल) की शुक्ल अष्टमी के दिन भ्रामरी देवी के दरबार में एक बड़े मेले का आयोजन होता है जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

एक अन्य आयोजन है जो नंदा देवी को समर्पित है, यह मेला भाद्रपद मास (अगस्त/सितंबर) की शुक्ल अष्टमी को लगता है। इस त्योहार को नंदाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। 

हर 12 वर्ष पर नंदा देवी राज जाट यात्रा निकाली जाती है जो इस स्थान से भी होकर गुजरती है। यह कुमाऊं और गढ़वाल मंडल का एक प्रमुख आयोजन है।

कैसे पहुंचें

उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले के बैजनाथ नामक कस्बे में एक ऊंचाई पर स्थित है यह अद्भुत मंदिर। यह स्थान बैजनाथ नामक कस्बे में है जो देहरादून से 300 किमी, कौसानी से 17 किमी, नैनीताल से 132 किमी, हल्द्वानी से 151 किमी और अल्मोड़ा से 70 किमी पर स्थित है।

कोट भ्रामरी मंदिर का शिखर

बैजनाथ से यहां पहुंचने के लिए दो रास्ते है। सबसे आसान तरीका है कि आप वाहन के द्वारा बैजनाथ से 4 किमी की दूरी तय करें और कोट भ्रामरी मंदिर के प्रवेश द्वार पहुंचे, जहां से कुछ सीढ़ियों की चढ़ाई करने के बाद आप मंदिर पहुंच जाएंगे। 

दूसरा रास्ता है कि आप बैजनाथ मंदिर के सामने से एक पथरीला रास्ता अपनाएं (टूरिस्ट गेस्ट हाउस के समीप और पानी की टंकी के बगल में है एक रास्ता) और पहाड़ों, गांवों, खेतों, और लंबे देवदार के घने वृक्षों से 3 किमी की ट्रैकिंग करते हुए मंदिर को पहुंचे। हमने यह रास्ता अपनाया और यदि आप ट्रैकिंग के शौकीन है तो यह रास्ता आपको अवश्य ही अपनाना चाहिए।

अन्तिम शब्द

वो कहते है ना एक कच्चा और पथरीला रास्ता आपको एक बेहतरीन गंतव्य को ले जाता है। ये ट्रैकिंग इस बात का सबूत था जिसने अंत में वह एहसास दिलाया जो अत्यंत सुखमय और सुकून भरा था। हम इस स्थान पर काफी समय तक रुके और कुछ आनंद के पल बिताए।

मैं तो शुक्रगुजार हूं अपने होटल के स्वामी का जिन्होंने हमें इस पवित्र स्थान के बारे में अवगत कराया और उनके पालतू कुत्ते (टाइगर) का, जिसने हमारा मार्गदर्शन किया। 

इस यात्रा के साथ ही हमारे बैजनाथ यात्रा का समापन हुआ। आपको यह लेख कैसा लगा। अपने विचार नीचे टिप्पणी बॉक्स में अवश्य लिखें और यदि आप हमें कुछ सुझाव भी देना चाहते हैं तो हमें बेझिझक बताइए। हम खुद को और सुधारने की कोशिश करेंगे।  

सम्बंधित लेख: हिमालय की गोद में बसा बैजनाथ मंदिर (बैजनाथ मंदिर 15 से अधिक मंदिरों का मंदिर परिसर है, जो 9 वीं -10 वीं शताब्दी का निर्मित है और ये बैद्य के देव को समर्पित है।)

एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।


Abhishek Singh

मैं अभिषेक सिंह नवाबों के शहर लखनऊ से हूं। मैं एक कंटेंट राइटर के साथ-साथ डिजिटल मार्केटर भी हूं | मुझे खाना उतना ही पसंद है जितना मुझे यात्रा करना पसंद है। वर्तमान में, मैं अपने देश, भारत की विविध संस्कृति और विरासत की खोज कर रहा हूं। अपने खाली समय में, मैं नेटफ्लिक्स देखता हूं, किताबें पढ़ता हूं, कविताएं लिखता हूं, और खाना बनाता हूँ। मैं अपने यात्रा ब्लॉग मिसफिट वांडरर्स में अपने अनुभवों और सीखों को साझा करता हूं।

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