भारत

कर्नाटक के रंगनाथस्वामी मंदिर की मेरी अविस्मरणीय यात्रा

इस संसार के कण-कण में भगवान विराजते हैं। हमारे देश में आप जगह-जगह स्थापित मंदिरों से अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां के लोगों में भगवान के प्रति कितनी आस्था, श्रृद्धा और विश्वास है। अपने कर्नाटक यात्रा के दौरान मुझे मैसूर के श्रीरंगपटना में ऐसे ही एक मंदिर, रंगनाथस्वामी मंदिर के दर्शन के सौभाग्य प्राप्त हुए।

यह मेरी पहली एकल यात्रा थी जहां मैं कुछ अच्छे लोगों से मिला जो दोस्त बन गए और कुछ समय के लिए मेरे साथ यात्रा भी की।

इस सृष्टि के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु के एक अवतार रंगनाथ स्वामी को समर्पित यह रंगनाथस्वामी मंदिर पंचरंग क्षेत्रम में आता है। पंचरंग क्षेत्रम के बारे में नीचे वर्णन किया गया है।

चूंकि मेरे पास एक ही दिन था और इससे कुछ समय पहले ही मैं चामुंडेश्वरी मंदिर के दर्शन करके लौटा था। अपनी साथी यात्री से कुछ शब्दों का आदान प्रदान करने के पश्चात हमने श्रीरंगपटना जाने के लिए बस ली और ललाइत होकर प्रस्थान किया।

रंगनाथस्वामी मंदिर के सामने का दृश्य

एक महत्वपूर्ण बात, अगर आप चाहे तो एक दिन का बस पास बनवा सकते है, जिसके बाद सभी घूमनेवाली जगहों पर जा सकते है। इसको किसी भी बस का कंडक्टर बना सकता है। हमे कंडक्टर ने बताया कि किस नंबर की बस से हम कहां कहां की सैर कर सकते है। 



मंदिर – एक परिचय

यह मंदिर मैसूर से 16 किमी की दूरी पर कावेरी नदी द्वारा बने एक द्वीप पर स्थित है। रंगनाथस्वामी मंदिर के नाम पर ही इस कस्बे का नाम श्रीरंगपटना पड़ा। यह कर्नाटक के मंद्या जिले में आता है। पहले इसको श्रीरंगपुरी के नाम से जाना जाता था। हम लोग आसानी से 35 मिनट में पहुंच गए।

रंगनाथस्वामी मंदिर का प्राचीन इतिहास

सर्वप्रथम इस मंदिर के गर्भगृह को 817 ई में एक नर्तकी हंबी ने बनवाया था। सन् 894 ई में गंग वंश के शासन के दौरान राजा थिरुमलायरा जी ने इसके निर्माण में सहयोग दिया। सन् 1117 ई में जब श्री रामानुजाचार्य यहां आए, तो होयसला साम्राज्य में बिट्टदेव नाम के एक जैन शासक थे। उन्हें एक बहस में श्री रामानुजाचार्य द्वारा पराजित किया गया था। बिटिरैया ने श्री वैष्णववाद स्वीकार किया और उन्हें विष्णुवर्धन नाम से सम्मानित किया गया। वह प्रभु का बहुत बड़े भक्त थे।

राजा विष्णुवर्धन ने श्री रामानुजाचार्य को धन और आठ गाँवों की भूमि दान की। रामानुजाचार्य ने प्रभु की सेवा को संचालित करने के लिए कुछ पदाधिकारियों को प्रभु या हेब्बर के रूप में नामित किया। 1554 ई में थिननना नामक एक हेब्बर विजयनगर गया और विजयनगर के दरबार में एक अधिकारी बन गया। वह विजयनगर से लौटा और शहर के लिए बाहरी किला और मंदिर के लिए बड़ी दीवार को बनवाया।

सन् 1610 से 1699 तक श्रीरंगपटना मैसूर राज्य की राजधानी थी। उस समय वहां के राजा कृष्णराज वाद्यार ने हैदर अली को अपना सेनापति नियुक्त किया। हैदर अली भी भगवान रंगनाथ के भक्त थे। उन्होंने भी मंदिर के जीर्णोद्धार  में अपना योगदान दिया। उनके पश्चात् टीपू सुल्तान ने भी इस मंदिर कि देख-रेख की और सहयोग दिया।

मुख्य मंदिर

यह मंदिर वैष्णव का एक प्रमुख तीर्थस्थल है।  मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य है। इसका गोपुरम अर्थात ऊपर के हिस्से में बहुत अच्छी कारीगरी की गई है। गर्भगृह तक पहुंचने के लिए हमें स्टील के पाईप से बने सकरे रास्ते से गुजरना पड़ा। गर्भगृह में भगवान रंगनाथ जी को सात मुख वाले शेषनाग के द्वारा बने शैय्या पर लेटा हुआ दिखाया गया है। उनके पास लक्ष्मी जी भी विराजमान हैं। 

इनके साथ साथ परिसर में भगवान गरुण, भूदेवी, ब्रह्मा, नरसिंह, श्रीदेवी, गोपालकृष्ण, हनुमान समेत अन्य छोटे छोटे मंदिर भी है। यहां पर गरुण देव की एक स्वर्ण परत वाली प्रतिमा भी आकर्षण का केन्द्र है।

पंचरंग क्षेत्रम क्या है?

पंचरंग क्षेत्रम रंगनाथ (भगवान विष्णु के एक रूप) के पांच मंदिरों का समूह है जो कावेरी नदी के तट पर स्थित है। पांचों मंदिर इस प्रकार हैं-

  • श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, श्रीरंगपटना (मैसूर)
  • श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, श्रीरंगम (ट्रीची)
  • श्री रंगपनी मंदिर, कुंभकोणम
  • श्री अपाकुदाथम मंदिर, (ट्रीची)
  • श्री परिमला रंगनाथ पेरूमल मंदिर, मैयलादुदुराई

रंगनाथस्वामी मंदिर की अद्भुत शैली

द्रविड़ियन शैली में निर्मित रंगनाथस्वामी मंदिर होयसाला और विजयनगर वास्तुकला का अद्भूत नमूना है। मंदिर की किले जैसी दीवारें और जटिल नक्काशियों वाला गोरूपम ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया। इसमें भगवान विष्णु के 24 अवतारों की नक्काशी के साथ 4 स्तंभ है जिन्हें चतुरविमष्टी कहा जाता है। 

मंदिर के बीचोबीच स्थित स्तम्भ

ऐसा माना जाता है कि होयसाला वंश के शासक नक्काशी की कला के बहुत बड़े पारखी थे और वे कारीगरों का भरपूर समर्थन करते थे। अंदर की दीवारों पर अत्यंत भव्य मूर्तिकला है जिसमें हिन्दू प्रौराणिक कथाओं को दर्शाया गया है। ऐसी उत्कृष्ट मूर्तिकला किसी को भी भौचक्का कर सकती है।

प्रचलित कथा

पापों से खुद को छुटकारा दिलाने के लिए कई लोग कावेरी नदी में पवित्र स्नान करते हैं। यहां तक ​​कि गंगा नदी भी आकर लोगों के उन पापों से भी छुटकारा पाती थी जिन्हें उसने अवशोषित किया था। कावेरी इन सब पापों से घिर गई। उनके पास एकमात्र शरण भगवान विष्णु थे। कावेरी ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए  श्रीरंगपटना में तपस्या की। भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे तीनों  वचन दिए।

1) कावेरी नदी की गंगा नदी की तुलना में अधिक पवित्रता होगी।

2) श्रीरंगपट्टन तीर्थस्थल बन जाएगा।

3) भगवान विष्णु भक्तों को आशीर्वाद देने और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए भगवान रंगनाथ के रूप में यहाँ प्रकट होंगे।

इन वरदानों से सम्मानित होने के बाद कावेरी ने भगवान की पूजा की। प्रभु ने तब स्वयं को एक बहुत ही सुंदर देवता के रूप में प्रकट किया जो कि नाग आदित्य पर विश्राम कर रहे थे। यह सुनकर लक्ष्मी जी, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं, कावेरी के साथ भगवान के दर्शन के लिए आईं। फिर वह पवित्र नदी में स्नान करती है, और भगवान की पूजा करने के बाद, अपने आप को प्रभु के दक्षिण पूर्व की ओर प्रकट कर लेती है।

रंगनाथस्वामी मंदिर का प्रमुख त्यौहार

रंगनाथस्वामी मंदिर मंदिर का मुख्य त्योहार कोटरोत्सव है, जिसे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें भगवान रंगनाथ का अच्छे से श्रृंगार किया जाता है। इस भव्य आयोजन का साक्षी बनने के लिए दूर दूर से अधिक संख्या में लोग आते है।

प्रमुख बिंदु

  • रंगनाथस्वामी मंदिर पहुंचने के लिए आप रेल, रोड और हवाई मार्गो का सहारा ले सकते है।
  • आस-पास कुछ छोटी दुकानें है जहां से आप मूर्तियां और याद के तौर पर कोई निशानी खरीद सकते है। ध्यान रहे मोलभाव करना ना भूलें।
  • रंगनाथस्वामी मंदिर में दर्शन का समय प्रातः 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक और सायं 4 बजे से 8 बजे तक।
  • आस-पास खाने पीने की जगहों का अभाव है, अतः कुछ खाने की चीजे और पानी लेकर जाएँ।

मेरा अनुभव

मुझे नहीं पता क्यों मुझे मंदिर और ऐसी शांत वाली जगहों पर एक अद्भुत सी शांति और सुकून का अनुभव होता है। ऐसी हर जगह पर मैं कुछ देर बैठकर ध्यान लगाने पर मजबूर हो जाता हूं। कुछ ऐसा ही रंगनाथस्वामी मंदिर पर भी हुआ। यह वाकई में एक अच्छा और यादगार अनुभव रहा।

मंदिर के निकट पानीपुरी बेचता एक युवक

दर्शन के बाद हम बस का इंतजार कर रहे थे तो वह हमें एक पानीपुरी वाले दिखे। खाते-खाते मैंने उनसे बात की तो उन्होंने अपना नाम राजकुमार बताया। पूछने पर पता चला कि वो इलाहाबाद के रहने वाले है। अंत में मैंने उन्हें गले लगाया, उन्होंने भी एक प्यारी सी हसीं के साथ हमें विदा किया।

एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।


Abhishek Singh

मैं अभिषेक सिंह नवाबों के शहर लखनऊ से हूं। मैं एक कंटेंट राइटर के साथ-साथ डिजिटल मार्केटर भी हूं | मुझे खाना उतना ही पसंद है जितना मुझे यात्रा करना पसंद है। वर्तमान में, मैं अपने देश, भारत की विविध संस्कृति और विरासत की खोज कर रहा हूं। अपने खाली समय में, मैं नेटफ्लिक्स देखता हूं, किताबें पढ़ता हूं, कविताएं लिखता हूं, और खाना बनाता हूँ। मैं अपने यात्रा ब्लॉग मिसफिट वांडरर्स में अपने अनुभवों और सीखों को साझा करता हूं।

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