आगरा किला एक लाल बलुआ पत्थर का किला है और मूल रूप से राजा बादल सिंह द्वारा निर्मित एक ईंट के किले का विस्तार है। इसकी भव्यता और इसके निर्माण का श्रेय मुगल सम्राट अकबर और शाहजहाँ को दिया जाता है।
आगरा मतलब ताजमहल और ताजमहल मतलब आगरा।
हमारे हृदय में एक ऐसी ही सामान्यजनक प्रवृत्ति उमड़ती है, जब हम आगरा और ताजमहल के बारे में विचार करते हैं। इसके मशहूर होने की एक वजह यहां बनने वाले पेठों की भी है, जिसको बिना चखे कोई भी पर्यटक वापस नहीं जाता।
खैर मेरी इस बार की आगरा यात्रा कुछ खास रही। अरे भाई! कब तक बस ताजमहल और पेठों का ही गुणगान करता रहूंगा।
क्यों ना आपको आगरा के कुछ और छुपे हुए रत्नों से रूबरू करवाऊं?
मेरा भी मकसद कुछ ऐसा ही था और इसी क्रम में फतेहपुर सीकरी घूमने के बाद अगला दिन मैंने आगरा किले के भ्रमण के लिए सुरक्षित कर रखा था।
चूंकि हमारा निवास ताजमहल के निकट था, जो आगरा किले से बहुत दूरी पर नहीं है। बस कुछ मिनटों की टैक्सी सवारी और हमारी उल्लू जैसी निगाहें आगरा किले के प्रवेश द्वार के सामने थीं। जब तक विपिन ऑनलाइन टिकट बुक करते, तब तक एक साहब खुद को औपचारिक गाइड बताकर मुझसे बोले, “आइए आपको पूरे किले का भ्रमण करवा दूं, मात्र 200 रुपए में।”
“नहीं जी। मैं स्वयं घूम लूंगा, पूछने के लिए शुक्रिया।” मेरा जवाब था।
“इसके अंदर कुल 14 महल है, आप जान नहीं पाएंगे कि कौन सा महल कहां है? अच्छा चलिए 2 लोगों का 100₹ ही दे दीजिएगा।”
भैया, यह मेरी आगरा किला की दूसरी यात्रा है, हमें चीज़ें पता हैं।” विपिन तपाक से बोला।
जैसे-तैसे सुरक्षा घेरे और कुछ सामान्य जांच तक पहुंचे जहां गार्ड बोले, “यह ट्राइपॉड आप नहीं ले जा सकते।”
खैर थोड़ा निवेदन करने पर वह इस बात पर राज़ी हुए कि हम इसका प्रयोग हरगिज़ नहीं करेंगे।
वैसे तो आगरा किला में मुख्य रूप से चार प्रवेश द्वार हैं, पर तीन द्वार पर्यटकों के लिए बंद हैं, और जिस दरवाज़े से आप प्रवेश कर सकते हैं वो है अमर सिंह दरवाज़ा, जो दक्षिण की ओर स्थित है। एक अन्य प्रवेश द्वार, उत्तर की ओर स्थित है, जिसे दिल्ली दरवाज़ा के नाम से जानते हैं।
अमर सिंह दरवाज़े से प्रवेश करने के पश्चात एक और प्रवेश द्वार आपके स्वागत को तैयार खड़ा है, जो विराट और आकर्षक है। इतना ऊंचा कि हमे अपनी पूरी गर्दन ऊपर उठानी पड़ी। बारीक कारीगरी और रंगीन टाइल्स इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं।
इस द्वार के सामने तो मैं जैसे एक चींटी के समान था। यहां पर द्वारपाल हाथियों पर तैनात रहते थे, इसलिए इसको ‘हाथी पोल’ भी बोलते है। अंदर घुसते ही दोनों तरफ से कुछ फीट ऊंची दीवार है जो लाल बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। ठीक सामने एक और गेट दिखेगा जो आपको अपनी ओर बुलाएगा।
आगरा किला का इतिहास मुग़ल शासन काल से भी प्राचीन है। इतिहासकारों का मत है कि 11वीं शताब्दी में राजा बादल सिंह नामक एक राजपूत राजा ने यह पर ईंटों से बना एक किला बनवाया और शायद यही वजह है कि इनके नाम पर ही इस किले का नाम “बादलगढ़” पड़ा जो अकबर के आने तक रहा।
सन् 1180 ईस्वी में गजनवी कि सेना ने यहां कब्जा कर लिया। उसके बाद सिकंदर लोदी पहले दिल्ली के बादशाह थे जो इस किले में रहे। तभी से आगरा दिल्ली के बाद दूसरी महत्वपूर्ण राजधानी बन गई।
सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी ने तब तक इस किले ने निवास किया जब तक सन् 1526 ईस्वी में उन्हें बाबर द्वारा पानीपत के युद्ध में हार नहीं मिल गई। बाबर भी यहां कुछ वर्षों तक रहा और उसका पुत्र हुमायूं भी 1540 तक महल में रहा और कुछ भवनों और बावली का निर्माण करवाया।
बिलग्राम में हुमायूं को शेर शाह सूरी ने पराजित किया और यहां तब तक रहने लगा जब तक हुमायूं ने इसे पुनः इसे प्राप्त नहीं कर लिया। और अंततः 1555 ईस्वी में तुगलकाबाद के युद्ध में जीत के साथ यह किला अकबर के अधीन आया।
अकबर इस किले का महत्व समझता था और इसीलिए उसने अपनी राजधानी दिल्ली से आगरा स्थानांतरित कर ली और इस साधारण दिखने वाले किले को लाल बलुआ पत्थर से आलीशान किले में परिवर्तित कर डाला। आज जो किला देखने को मिलता है, वह 8 वर्ष के समय और 4000 मजदूरों की मेहनत का नतीजा है।
अकबर से लेकर आखिरी मुग़ल शासक औरंजेब तक सभी इसी किले में रहे। शाहजहां ने अपने काल में कई इमारतों को तोड़कर सफेद संगमरमर से कई इमारतें बनवाई। इतिहासकार अबुल फजल ने इसमें 500 इमारतें होने का दावा किया था और इसको वास्तुकला का अद्भुत नमूना बताया था।
18वी शताब्दी में मराठाओं ने इस पर आक्रमण किया और इसको हथिया लिया और अंततः सन् 1803 में आंग्ल मराठा युद्ध में अंग्रेजों ने इसको अपने अधीन कर लिया। सन् 1857 की क्रांति में भी इसकी अहम भूमिका रही।
चूंकि इस किले में कभी इमारतों का अंबार लगा हुआ था, पर वक्त के साथ इमारतें नष्ट और ध्वस्त होती गई। आज संपूर्ण किले का 70% भाग भारतीय सेना के कब्जे में है और मात्र 30% ही आम जनता के लिए खुला है। जो इमारतें देखने को मिलती हैं वो निम्नवत हैं:
सन् 1983 में आगरा किला को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया।
अंदर प्रवेश करते ही दाहिनी तरफ एक मनमोहक महल है, जिसके सामने हरा भरा बगीचा है, और यहीं से आपको शुरुआत भी करनी है। हमने सीधे महल में प्रवेश ना करके उसके दाहिनी ओर के ध्वस्त हिस्से और स्थित एक बावली की ओर कदम बढ़ाए। सुरक्षा दीवार के पास होने के कारण शायद इसको इतनी क्षति पहुंची।
चूंकि जहांगीर का बचपन यहां व्यतीत हुआ था, इसको जहांगीरी महल के नाम से भी जानते हैं। और संपूर्ण इमारत को संयुक्त रूप से बंगाली महल बोलते है, क्योंकि बंगाली वास्तुकला की तरह इसमें छोटे आंगन और समतल छतों का प्रयोग हुआ है। इसलिए नाम को लेकर भ्रमित होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है।
वापस हम महल के प्रवेश द्वार पर आए और अन्दर कदम रखे। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित और अत्यंत सुंदर आकृतियों की कारीगरी का यह नगीना, अकबर का हरम (निवास स्थान) था जहां 500 से ज्यादा स्त्रियां रहती थीं। अकबर ने सभी को विशिष्ट कमरे प्रदान किए थे। यह सबसे बड़ी इमारत में से एक है जिसका विस्तार काफी अधिक है। इसके ठीक सामने बड़ा सा बर्तन रखा है, जो जहांगीर का स्नान कुंड है।
अंदर घुसते ही आप एक चौकोर आंगन में आते है को आपका मुंह खुला का खुला रख देगा। राजपूताना और फ़ारसी वास्तुकला में निर्मित और लटकदार नक्काशी के साथ साथ पत्थर की कड़ियां और फलकें बहुत अनूठी हैं। नक्काशी के साथ साथ चिनीकारी और चूने का अलंकरण इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है।
मुझे हैरत होती है कि ना कोई आधुनिक यन्त्र, ना कोई शिक्षा, फिर भी इतनी बारीक कारीगरी। निश्चय ही कारीगर के हाथ चूमने लायक है। थोड़ा आगे बढ़ने पर आपको कुछ छोटे कमरे दिखते हैं जिसमें आपको कुछ परिंदे फड़फड़ाते हुए मिल जाएंगे।
अगला पड़ाव शाहजहानी महल है, जो इस किले में शाहजहां द्वारा पुरानी इमारत को तोड़कर बनवाई जाने वाली पहली इमारत थी। इसमें एक विशाल हॉल के साथ कमरे हैं। शाहजहां ने इसके ऊपर सफेद चूने का प्लास्टर लगवाकर कुछ फूल पत्ती और अन्य आकृतियां बनवाई जिसके कारण यह चमकने लगा।
16.5 फीट ऊंचा और 13.5 फीट चौड़ा यह दरवाज़ा गजनी दरवाज़ा है जिसे महमूद गजनवी के मकबरे से अंग्रेज़ो द्वारा उखाड़ लाया गया था। एक बार एक अंग्रेज़ अधिकारी ने कहा था की यह चंदन का वही दरवाज़ा है जिसे गजनी ने 1025 ईस्वी में सोमनाथ से लूट कर लाया था, पर यह देवदार का सामान्य दरवाज़ा है। मात्र भ्रम फ़ैलाने के लिए अंग्रेज़ो द्वारा ऐसा किया गया था। इसमें अरबी अभिलेख भी लिखे है।
दो पालकी जैसी इमारतों के बीच स्थित है, संगमरमर से बने एक नायाब चौकर महल जो ख़ास महल है। फव्वारे के साथ-साथ संगमरमर की बेहतरीन नक्काशी वाला यह इमारत शाहजहां और मुमताज़ महल का निवास हुआ करता था। इसकी खिड़कियां जालीदार है जिसमे से ताजमहल को देखा जा सकता है।
इसके दोनों तरफ पालकी जैसे दो इमारतें शाहजहां की दो बेटियों जहांनारा और रोशनआरा के निवास हुआ करते थे। देखने में राजपूत शैली में प्रतीत होते है, पर संगमरमर की चमक इसकी खूबसूरती बढ़ा देती है।
एक वक्त ऐसा आया जब औरंगज़ेब ने अपनी ही पिता शाहजहां को बंदी बना लिया और 8 साल तक आगरा किले के जिस हिस्से में रखा वो है, मुस्समन बुर्ज। यहीं से शाहजहां ताजमहल निहारता था। अकबर ने इसे लाल पत्थरों से बनवाया था जहां वो सूर्योपासना करता था।
जहांगीर भी इसी स्थान को झरोखा दर्शन के रूप में प्रयोग करता था। इसके हाशिए पर शैलीकृत बेले और फूल पत्तियां जड़ी गई है और सफेद संगमरमर में पीले रंग का मिश्रण मन को मोह लेता है।यह शाहजहां द्वारा बनाए गए इमारतों में से एक उत्कृष्ट इमारत है।
यहां तक जहांगीर ने इसके बगल में ही न्याय की जंजीर लगवाई थी जिसको कोई भी हिलाकर अपनी समस्या के बारे में सीधे मुग़ल शासक को अवगत करा सकता था। इसका वजन लगभग एक क्विंटल था। विलियम हॉकिन्स जैसे व्यक्तियों ने इसे स्वयं देखा है। इसको अदल-ए-जहांगीर भी बोलते थे।
मुस्समन बुर्ज के पश्चिम की ओर एक और नायाब नमूना स्थित है जो कलाकारी का अद्भुत दृश्य पेश करता है। किसी को भी इसके अंदर जाने की इजाज़त नहीं है। बस आप बाहर से ही इसका सरोकार कर सकते है।
ग्रीष्म महल के रूप में बनवाया गए इस महल में 2 फव्वारे युक्त कुंड हैं जो नलिकाओं से जुड़े है। गर्मियों में यह शीतल वातावरण प्रदान करता था।
इसका प्रमुख आकर्षण कांच का अलंकरण है जो सभी दीवारों और छतों पर किया गया है। शीशों का आयात सीरिया से किया गया था। इस अंधेरे कमरे में एक प्रकाश की किरण पड़ने से रोशनी प्रतिबिंबित होती थी जिससे सारा कमरा चमकने लगता था। यहीं इसकी विशेषता थी।
दीवान-ए-आम एक बड़ा प्रांगण है जिसके सामने एक बड़े वर्ग में खुली जगह है। शाहजहां द्वारा इसका निर्माण एक मकसद से करवाया गया था। मुग़ल बादशाह यहां आम जनता की समस्याओं को सुनता था और समाधान का सुझाव देता था।
इसके ठीक सामने जॉन रुस्केल नामक एक अंग्रेज़ अधिकारी की कब्र है जो सन् 1857 की क्रांति में यहां मारा गया। क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने इसको गोला बारूद रखने का भंडार बना दिया था।
यह एक ऐसा चौकर प्रांगण है जहां बीच में एक छोटा तालाब था जिसमे सुनहरी मछलियां हुआ करती थी। मेरे पास खड़े एक गाइड ने बताया कि इस स्थान पर एक बाजार लगती थी जिसे मीना बाज़ार के नाम से जाना जाता था।
सन् 1635 में निर्मित नगीना मस्जिद शाहजहां और हरम की स्त्रियों के नमाज़ अदा करने के लिए बनवाई गई थी। यह एक निजी मस्जिद थी जहां सभी को आने की इजाज़त नहीं थी। मैं अन्दर नहीं गया और वापस दीवान-ए-आम के सामने बगीचे में आकर कुछ देर विश्राम किया।
दो इमारतें जो मैं नहीं घूम पाया वो, दीवान ए-खास और जहांगीर का तख्त थी।
कोरोनाकाल को देखते हुए टिकट काउंटर से टिकट नहीं दिए जा रहे हैं। आपको क्यूआर कोड स्कैन करके ऑनलाइन भुक्तान करना है और फिर आपको टिकट प्राप्त हो जाएगा।
नोट: आप चाहें तो गूगल प्ले स्टोर से मॉन्यूमेंट ऑफ आगरा नाम का एप लेकर आगरा और फतेहपुर सीकरी के सभी जगहों की टिकट ऑनलाइन बुक कर सकते हैं।
आगरा किले के निर्माण का श्रेय मुगल सम्राट शाहजहाँ को दिया जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि 11 वीं शताब्दी में, बादल सिंह नामक एक राजपूत राजा ने ईंटों से इस किले का निर्माण ‘बादलगढ़’ के नाम पर करवाया था, जो अकबर के आने तक ऐसा ही रहा।
आगरा किले और ताजमहल के बीच की दूरी लगभग 4.5 किमी है।
आप ई-रिक्शा, टुक-टुक या टैक्सी सेवा जैसे ओला, उबर आदि का उपयोग करके आगरा किले और ताजमहल के बीच यात्रा कर सकते हैं।
आगरा किले का निर्माण 1565 में अकबर द्वारा शुरू किया गया था और 1573 में उनके पोते शाहजहाँ द्वारा पूरा किया गया था।
जैसा कि मैं सोचकर आया था कि यहां कुछ ना कुछ अचंभित करने वाला मिलेगा और ऐसा हुआ भी। इतनी सारी इमारतें और इतने प्राचीन इतिहास ने आगरा किले की यात्रा को और भी रोचक बना दिया। अगर आप आगरा आते हैं तो आगरा किले को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें। यह आपकी आगरा यात्रा को और भी यादगार बना देगा।
उम्मीद करता हूं यह लेख आपको पसंद आया हो और मैं सभी जरूरी जानकारी देने में सक्षम रहा हूं। अगर फिर भी कोई चीज़ छूट गई हो या आप अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो नीचे टिप्पणी बॉक्स में बताएँ। हम खुद को और सुधारने का सम्पूर्ण प्रयत्न करने में तत्पर हैं।
एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।
2024 में परिवार के साथ वाराणसी की यात्रा की योजना बना रहे हैं? यह ब्लॉग…
अगर आप शहर के भीड़भाड़ से दूर शांति की तलाश में हैं तो शांगढ़ सैंज…
नैनीताल के आसपास घूमने की जगह तलाश कर रहे हैं? यहाँ जानिये नैनीताल और उसके…
जब बात ट्रेकिंग की हो तो अच्छे किस्म के जूतों का होना आवश्यक है। तो…
यह लेख आपके लिए है यदि आप अयोध्या घूमने का प्लान बना रहे है। जानें…
इस यात्रा गाइड में, हम आपको जोधपुर के एक आभासी यात्रा पर ले जाएंगे। इसके…
This website uses cookies.
Leave a Comment