पहली नज़र में इस शहर को देख जिस विचार ने सबसे पहले मेरे दिमाग में घर किया वो इस शहर की हरियाली थी।
यह देश की राजधानी दिल्ली और हमारे गृह शहर लखनऊ की तुलना में अधिक सुंदर लग रहा था।
यहां तक कि शहर के सबसे हलचल वाले किनारों पर भी पेड़ों के लिए जगह है, इसी बात ने मेरा दिल जीत लिया।
मेरे दिमाग ने मुझे तुरंत याद दिलाया कि मैंने कहीं सुना था ( शायद स्टीव जॉब्स ने कहा था) “जब प्रौद्योगिकी और कला (प्रकृति एक कला ही तो है) साथ – साथ आते हैं तो हम कुछ असाधारण बनाते है।”
एक प्रौद्योगिक शहर होने के नाते, पुणे ने अभी भी अपने प्राकृतिक संसाधनों को नहीं खोया। ऐसा लगता है जैसे यहां के लोग जीवन में पेड़ो और प्रकृति का महत्व को भली भांति समझते हैं।
यह शहर भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से लगभग 150 किलोमीटर दूर, मुंबई – गोवा राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य में है।
उत्तर हां भी है और नहीं भी। मेरा मतलब है, यह आपकी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। लेकिन अगर आप बस शहर के मुख्य जगहों पर जाना चाहते हैं तो ठीक है। यह एक दिन में किया जा सकता है बशर्ते आप इसे सही तरीके से संयोजित करें। अन्यथा, शहर को गहराई से जानने के लिए, एक दिन बिल्कुल भी काफ़ी नहीं है। वास्तव में, किसी भी शहर के लिए यह काफ़ी नहीं है।
शनिवारवाड़ा, आगा खान महल, दगडूसेठ गणपति मंदिर, खडकवासला बांध, सिंहगढ़ किला (ट्रेक), लाल महल, पार्वती पहाड़ी मंदिर, बुंद गार्डन, राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय, और एफसी रोड (और हांगकांग लेन) सड़क खरीददारी के लिए।
ऐसे तीन तरीके हैं जिनसे आप पुणे पहुँच सकते हैं।
हाँ। हमने पुणे में काउचसर्फिंग की और खूब मस्ती की। हमारे होस्ट प्रतीक ने हमें अपने पास आसरा और एक यादगार लम्हों का पिटारा दिया, जो हम कभी भूल नहीं पाएंगे।
शहर के सबसे पुराने कैफे “गुडलक कैफे” में जाना न भूलें। वहां का खाना बहुत स्वादिष्ट है। हमने शनिवारवाड़ा के बाहर “मस्तानी शेक” भी पिया। यह भी यहां काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा, डगड़ूशेठ मंदिर के पास में मोदक का स्वाद चखना ना भूलें। हो सके तो गरी के बने हुए मोदक भी जरूर खाएं। पास में ही एफसी रोड पर “वोहुमान कैफे” भी जा सकते है। यहां आस- पास स्थानीय जायके का मज़ा भी ले सकते हैं।
कभी यह सात मंजिला इमारत, शनिवारवाड़ा मराठा साम्राज्य की गद्दी हुआ करती थी, लेकिन अब यह केवल खंडहर और पत्थर से निर्मित एक चाहरदिवारी है।
सन् 1828 में एक अस्पष्टीकृत आग के कारण इस इमारत के 6 मंजिल नष्ट हो गए।
जैसे ही आप महल में प्रवेश करते हैं, महल का विशाल मुख्य द्वार, जिसे “ दिल्ली दरवाज़ा” के नाम से भी जाना जाता है, आपको अपनी विशालता से चकित कर देगा। कहा जाता है कि यह उत्तर मुखी दरवाजा है जो दिल्ली की ओर मुख कर के मुगल साम्राज्य का विरोध और मराठा साम्राज्य का गुणगान करता है।
दरवाज़े में बड़ी-बड़ी नुकीली आकृतियां हैं, जो स्टील से बनी हैं, यह इस प्रकार ऊंची है कि एक सैनिक हाथी इसे भेद करके आसानी से प्रवेश न कर सके।
जैसे ही आप वाडा में प्रवेश करते हैं, आपको खंडहर और एक सुंदर बगीचे का मिश्रण दिखाई देगा।
इसके बीचोबीच एक फव्वारा है जो कभी आने वाले आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता था, लेकिन अब ये भी बेजान पड़ा है।
ऐसा कहा जाता है कि सभी छह मंजिल आग के कारण आसानी से गिर गईं क्योंकि वे पत्थर के बजाय ईंट से बनी थी। जो संरचनाएँ अभी तक फल-फूल रही हैं, वे पत्थर से बनी थीं। अर्थात् जो आज हम देख पाते है वो सब पत्थरों से निर्मित है।
हर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर सूचना पटल है, जिसमे उस स्थान की पूरी जानकारी उकेरी गई है।
पूरे महल को चारों तरफ़ से मोटी दीवारों ने घेर रखा है। सीढ़ियों के सहारे आप इन दीवारों के किनारे-किनारे चलते हुए बाहर के माहौल को निहार सकते हैं। आगे आपको एक हॉल दिखाई देगा जो अभी भी अच्छी स्थिति में है। यह दिल्ली दरवाज़े के ठीक ऊपर है।
दिलचस्प बात यह है कि इस हॉल ने मुझे दिल्ली में बने हौज़ खास की याद दिला दी। यहां से आप पूरे बगीचे को देख सकते है और कुछ तस्वीरें खिंचवा सकते है।
चलिए पता करते हैं।
भ्रमण करते वक़्त आप “नारायण दरवाजा” नामक एक गेट के पास आएंगे। नारायणराव मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा थे। उनके चाचा रघुनाथराव और चाची आनंदीबाई ने रक्षकों को उन्हें मारने का आदेश दिया। इस प्रकार उनकी मृत्यु हुई।
आसपास के लोगों ने कथित तौर पर नारायणराव के मृत्यु के बाद उनके असहाय रोने की आवाजों को सुनने का दावा किया – “काका माला वचवा “(चाचा, मुझे बचा लो)।
शायद यही वजह है कि कुछ लोग शनिवारवाड़ा परिसर को भूतिया बताते हैं।
जैसे मैंने कल्पना की थी, उसके विपरीत, शनिवार वाडा शहर के हलचल वाले इलाके में स्थित है। जिसका मतलब है कि आसपास खाने के पर्याप्त विकल्प हैं।
लेकिन सभी खाद्य पदार्थों को छोड़कर, मस्तानी बाई शेक और भेल पुरी का सेवन करना एक अच्छा विकल्प हो सकता हैं।
मेरे होस्ट प्रतीक (जो बहुत ही हसमुख व्यक्ति है) ने मुझे बहुत लोकप्रिय दगड़ूशेठ गणपति मंदिर के बारे में बताया।
पुणे का यह मंदिर भगवान गणेश का सबसे बड़ा और शायद सबसे प्रमुख मंदिर भी है।
लिहाजा, विचार शनिवारवाड़ा से यहां तक पहुंचने का हुआ। गूगल ने भी हमें बताया कि यही उचित है। शनिवारवाड़ा से मंदिर की दूरी लगभग 1 किमी है। इसलिए हमने पदयात्रा करने का निर्णय लिया। कुछ ही मिनटों में गंतव्य को पहुंच गए।
मंदिर में प्रवेश करने के लिए, आपको प्रतीक्षा करने वाले लोगों की एक पंक्ति में घूमना होगा। गणपति बप्पा की इतनी सुंदर और आकर्षक मूर्ति मैंने कभी नहीं देखी थी।
बप्पा से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, आप प्रसिद्ध मोदकों (एक भारतीय मिठाई) का स्वाद ले सकते हैं।
मंदिर के बाहर मिठाई की दुकानों पर आसानी से आपको रंग-बिरंगे मोदक मिल जाएंगे।
मोदक अलग-अलग प्रकार के हो सकते है, लेकिन मै आपको सलाह दूंगा कि आप यहां सफ़ेद गरी के बानी हुए मोदक चखें, जो देखने में बिल्कुल मोमोज की तरह होते है।
फर्ग्यूसन कॉलेज रोड या स्थानीय रूप से, एफसी रोड एक ऐसा स्थान है जहां आप तमाम चीज़े कर सकते है, जैसे स्ट्रीट शॉपिंग, पुराने-नए कैफ़ेज़ के जायके और स्थानीय भोजन।
गुडलक कैफ़े में आप मशहूर बन मस्का और ईरानी चाय की चुस्की जरूर लें। बन मस्का मूल रूप से ब्रेड और बटर है जिसे स्थानीय भाषा में लोग बन -मस्का बोलते हैं।
कैफे लगभग हमेशा भीड़ से भरा होता है, इसलिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।
यदि आप कुछ और खाना चाहते हैं तो पास में ही स्थानीय महाराष्ट्रीयन भोजन का स्वाद चखना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। मिसल पाव, वड़ा पाव भी यहां बहुत प्रसिद्ध है।
यह हमारी पूरी एक दिवसीय पुणे यात्रा का सबसे अच्छा हिस्सा था। हमने कैब ली और सोचिए अगर सफ़र के साथ आपको बारिश और कुछ पुराने क्लासिक फिल्मों के गाने सुनने को मिल जाए तो? सुनने में ही मज़ा आ गया ना? कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी था। ख़ैर हम जैसे तैसे गानों की धुन में खोए यहां पहुंचे। जैसे ही हम यहाँ पहुँचे, हम सभी उत्साह से उछलने लगे। सामने का दृश्य इतना खूबसूरत था कि शायद मेरी आंखो को भी विश्वास नहीं हुआ।
मुथा नदी पर बना, खडकवासला बांध 1.6 किमी का बांध है जो शहर से लगभग 20 किमी दूरी पर स्थित है।
बांध द्वारा एक झील का निर्माण हुआ है जिसे खडकवासला झील के नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह पुणे शहर के जल का स्रोत है।
सड़क से जब आप झील की ओर जाते हैं, तो आग पर पके भुट्टे, पकोड़े, और चाय के छोटे-छोटे ठेले एक पंक्ति में लगे हुए मिल जाएंगे। इन लोगो ने ठेलो के किनारे अपनी अपनी चटाई ऐसे बिछा के रखी है कि आप यहां खाने के साथ-साथ सूर्यास्त का भरपूर आनंद सकते है।
हमने भी पहले नीचे झील के किनारे थोड़ी मौज-मस्ती की फिर ऊपर आकर चाय और गरमा गरम पकोड़े ले कर बैठ गए सूर्यास्त की प्रतीक्षा में।
जानकारी के लिए आपको बता दूं कि नीचे झील किनारे जाने का कोई रास्ता नहीं है, लेकिन कुछ ढलान हैं जिनके सहारे नीचे तक जा सकते हैं।
ख़ैर, फ़िर आया वो वक़्त जो मेरे लिए थम सा गया। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे मंत्रमुग्ध करने वाला पल था। मेरी तो पलके भी नहीं झपक रही थीं। और इस चक्कर में पहली बार मेरी मोहब्बत “चाय” ठंडी हो गई। उस समय चाय भी फीकी लग रही थी।
अगर आप सही समय के साथ चले तो अमूमन आपको सूर्यास्त का हसीन नज़ारा देखने को अवश्य मिल जाएगा।
सच पूछिए तो मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि एक दिन में मैं इतना घूम पाऊंगा। सुबह की शुरुआत भगवान के दर्शन से और अंत मनमोहक सूर्यास्त से, इससे अच्छा दिन भला क्या हो सकता है। परन्तु यदि आप कभी पुणे शहर घूमने का विचार बनाए तो कम से कम 2-3 दिन इस खूबसूरत शहर में अवश्य बिताएं।
हमारी तरफ़ से श्रीमान प्रतीक जी को बहुत बहुत शुक्रिया, हमारी इतनी सारी मदद के लिए तथा पुणे को अच्छे से घूमने के वो अनमोल नुस्ख़े देने के लिए ।
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Nice blog. Nice description about Pune......