उत्तराखंड में स्थित बैजनाथ मंदिर वास्तव में 15 से अधिक मंदिरों का मंदिर परिसर है, जो 9 वीं -10 वीं शताब्दी का निर्मित है। यह अनुभवात्मक मार्गदर्शिका आपकी यात्रा की योजना बनाने से पहले सभी जानने वाली बातों के बारे में बताएगी।
मंदिर भारत देश के हृदय के रूप में समर्पित हैं। हर एक कोने में आपको एक मंदिर देखने को मिल ही जाएगा। जब आप किसी मंदिर परिसर में होते हैं तो आप वहां की आध्यात्मिकता और भक्ति भाव के माहौल में खुद को तरोताजा और गौरवान्वित महसूस करते हैं।
और आज, इस लेख में, हम आपको भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक- बैजनाथ मंदिर ले जाएंगे जो उत्तराखंड में स्थित है। हम आपको बताएंगे कि आप यहां कैसे पहुंच सकते हैं, इसका आकर्षक इतिहास, और इस स्थान से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं।
सम्पूर्ण उत्तराखंड राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और इसी राज्य के बागेश्वर जिले के बैजनाथ नामक एक कस्बे में स्थापित जटिल और विशाल पहाड़ियों के बीच यह ऐतिहासिक मंदिर बसा है।
हर मंदिर की अपनी एक अलग पहचान और विशेषता होती है। कुछ ऐसी ही प्रौराणिक मान्यताओं के साथ यह अद्भुत मंदिर अपनी पहचान को और भी खास बनाता है। आज मैं आपको अपने साथ मंदिर की एक छोटी से यात्रा पर के जाऊंगा और बताऊंगा इस मंदिर की विशेषता और महत्ता और ये भी कि अगर आप इस मंदिर के दर्शन के बारे के विचार बना रहे हैं तो कब और कैसे इस पवित्र स्थान पर भ्रमण करना उचित है।
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मंदिर का ऐतिहासिक सफर
प्राचीन काल में यह स्थान कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था। इसकी महत्ता में तब और विस्तार हुआ जब कत्यूरी राजाओं ने अपनी राजधानी जोशीमठ से स्थानांतरित करके कार्तिकेयपुर किया। तब काफ़ी संख्या में शिव भक्तगणों ने भी प्रजा के साथ प्रवास किया और उनके मांग करने और पूजन हवन करने हेतु कत्यूरी राजाओं ने यहां बैजनाथ मंदिर परिसर का निर्माण करवाया। वैसे हिमालय क्षेत्र में निर्मित सभी मंदिरों के निर्माण का श्रेय कत्यूरी राजाओं को ही जाता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि इतिहासकारों का मत है कि कत्यूरी शासक अयोध्या के सूर्यवंशी शासकों के वंशज थे। कभी यह क्षेत्र कत्यूर घाटी के नाम से भी प्रचलित हुआ करती थी। शोधकर्ताओं के अनुसार इसका निर्माण सन् 1150 में हुआ था। हालांकि इसको साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। मंदिर के शिलालेख भी इसका निर्माण को 9 वीं -10 वीं शताब्दी का बताते हैं। इसको भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है।
मंदिर परिसर की संरचना
नागर शैली में निर्मित इस मंदिर को देखने पर द्रविड़ वास्तुकला की झलक मिलती है। बैजनाथ मंदिर परिसर छोटे बड़े कुल 18 मंदिरों का समूह है जो चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और पर्यटकों को एक मनमोहक दृश्य की प्रस्तुति देता है। मंदिर तक जाने के लिए एक ढलान वाले पथ का प्रयोग करना पड़ेगा जो अंत में गोमती नदी के किनारे समाप्त होगी। परिसर में ठीक सामने “गोल्डन महासीर” नामक तालाब है जो गोमती नदी का ही हिस्सा है। इसमें तैरती सुनहरी रंग की मछलियां आकर्षण का केन्द्र हैं।
प्रवेश करते ही दो पत्थर निर्मित शिलालेख दिखाई देता है जो मंदिर सम्बन्धित सामान्य जानकारी को बताता है। शिव मंदिर के अलावा अन्य मंदिर में केदारेश्वर, लक्ष्मी नारायण, ब्राह्मणी मंदिर आदि शामिल हैं। परिसर में सूर्य, ब्रह्मा, शिव, गणेश, पार्वती, चंदिका और कुबेर देवों की मूर्तियां सुशोभित हैं। सभी मंदिरों में से सिर्फ 2 मंदिर वर्तमान समय में कार्यरत है। उनमें भगवान शिव और पार्वती जी का मन्दिर है। मुख्य मंदिर भगवान शिव के एक रूप बैजनाथ अर्थात् “वैद्य के देव” को समर्पित है। इस मंदिर के अंदर एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है जिसकी रोज पूजा आराधना की जाती है।
इसके निकट स्थित पार्वती देवी मंदिर के पास हमें कुछ हलचल दिखी। उत्सुकतावश वहां पहुंचा तो देखा कि कुछ स्थानीय लोग कोई विशेष पूजा कर रहे है और उनके निकट पुजारी जी मंत्रों का उच्चारण कर रहे है। पूरा परिसर जैसे मंत्रोच्चार से परिपूर्ण हो गया। इस मंदिर को देख कर हमें मनाली स्थित हिडिंबा देवी मंदिर की याद आयी क्योंकि दोनों की इमारत हूबहू समान है।
वहां द्वार पर खड़ी एक वृद्ध महिला से पूछने पर उन्होंने अंदर के दर्शन कराए और प्रसाद भी दिया। अंदर सिस्ट पत्थर से निर्मित देवी पार्वती की प्रतिमा है जो अन्य 26 लघु मूर्तियों से सुशोभित है। बाहर आकर मैंने उस महिला से मंदिर सम्बन्धित सामान्य जानकारी जानने की कोशिश की और उन्होंने बड़ी ही कुशलतापूर्वक सब कुछ बताया।
प्रचलित किवदंतियां और कथाएं
हिन्दू प्रौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह गरुड़ गंगा और गोमती नदी के संगम पर हुआ था।
कुछ महापंडितों का यह भी कहना है कि इस स्थान पर रावण कुछ दिन के लिए रुका था।एक अन्य मान्यता यह है कि इसका निर्माण एक ब्राह्मण महिला ने किया और भगवान शिव को समर्पित किया।
यहां से 2 किमी पर स्थित कोट भ्रामरी मंदिर है जहां बोला जाता है कि आदि गुरू शंकराचार्य जी अपने बद्रीनाथ के रास्ते के दौरान यहां ठहरे थे।
प्रमुख त्यौहार और दर्शन का समय
हमारा होटल मंदिर परिसर के ठीक सामने 200 मीटर की दूरी पर था और जिस शाम हम वहां पहुचें, उस समय हमें मंदिर की घंटियों की आवाज़ साफ सुनाई दी और कमरे के दरवाज़े से देखने पर दृश्य धूमिल सा दिखा। सोचा कल सुबह सबसे पहला काम मंदिर दर्शन होगा।
मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। आप कभी भी दर्शन कर सकते हैं और मंदिर परिसर का भ्रमण कर सकते हैं।
घूमने का सही समय तो वैसे सालभर है पर बरसात के मौसम में जाने से परहेज़ करें क्योंकि इस मौसम में भूस्खलन होने की संभावना बढ़ जाती है।
आरती का समय
प्रातः सुबह 7 बजे और रात्रि 8 बजे।
शिवरात्रि और नागपंचमी यहां मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार है। इस मौके पर यहां भरी भीड़ उमड़ती है और मेले का आयोजन भी होता है।
कहां ठहरें?
वैसे आप चाहे तो कौसानी या बागेश्वर से दिनभर का समय लेकर यहां दर्शन करने आ सकते है। मैं यहां 3 दिन तक रुका था।
यदि आप रुकने का विचार बनाते हैं तो इसके लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम का सरकारी गेस्ट हाउस उपलब्ध है जो मंदिर के सामने है। इसके कमरे सभी जरूरी सुविधाओं से युक्त होने के साथ साथ काफी सस्ते भी हैं।
कैसे पहुंचें
यहां पहुंचना जितना कठिन दिखता है, असल में उतना है नहीं। हमें तो पहुंचने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। यह स्थान देहरादून से 300 किमी, कौसानी से 17 किमी, नैनीताल से 132 किमी, हल्द्वानी से 151 किमी और अल्मोड़ा से 70 किमी पर स्थित है। आप निम्न तरीकों से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वारा
पंतनगर एयरपोर्ट सबसे निकटतम हवाई अड्डा है जो 185 किमी की दूरी पर स्थित है। वहां से बस या टैक्सी का प्रयोग किया जा सकता है।
रेलमार्ग द्वारा
150 किमी की दूरी पर स्थित काठगोदाम रेलवे स्टेशन सबसे करीब है। वहां से बस और टैक्सी उपलब्ध है।
निर्देश: नोट: आप हल्द्वानी बस स्टैंड से सीधे बस प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि यह हल्द्वानी स्टेशन से 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है (हल्द्वानी काठगोदाम से एक स्टेशन पहले स्थित है)। यदि आपको सीधी बस नहीं मिलती है, तो पहले अल्मोड़ा के लिए बस लें और फिर वहाँ से बैजनाथ के लिए बस या टैक्सी लें।
सड़क मार्ग द्वारा
अल्मोड़ा, नैनीताल, हल्द्वानी और काठगोदाम से नियमित अंतराल पर बसें चलती है। आप इन स्थानों से टैक्सी भी ले सकते हैं।
कुछ सामान्य पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तराखंड के बैजनाथ मंदिर कैसे पहुंचें?
उत्तराखंड में स्थित बैजनाथ मंदिर हल्द्वानी से 151 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने का आसान तरीका बस या टैक्सी के माध्यम से है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है और निकटतम रेलवे स्टेशन, काठगोदाम रेलवे स्टेशन है।
उत्तराखंड का बैजनाथ मंदिर कितना प्राचीन है?
इस मंदिर के निर्माण की कोई सही दस्तावेज मौजूद नहीं होने के कारण भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसके निर्माण को 9-10वीं शताब्दी का बताया गया है।
उत्तराखंड के बैजनाथ मंदिर से जुड़ी किवदंतियां क्या हैं?
कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह गरुड़ गंगा और गोमती नदी के संगम पर हुआ, जो इस क्षेत्र में आती है। एक और किवदंती है कि आदि गुरु शंकराचार्य भी इसके निकट रुके थे जब वे बद्रीनाथ की ओर प्रस्थान कर रहे थे।
उत्तराखंड स्थित बैजनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
इतिहासकारों का मत है कि इसका निर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा सन् 1150 इस्वी में किया गया। कुछ लोगों का कहना है कि एक ब्राह्मण महिला ने इसका निर्माण करवाया और भगवान शिव को समर्पित किया।
हमारा अनुभव
हम कोरोना काल में इस यात्रा पर गए थे। चूंकि काफी महीने बिना यात्रा किए बीत गए थे, हमें अपनी यात्रा फिर से शुरू करने के लिए एक शांत और आध्यात्मिक जगह की तलाश थी और हमारी तलाश बैजनाथ आकर पूरी हुई।
हम मंदिर में दर्शन के उपरांत कुछ घंटे वहां बैठे। बस मंदिर में आते लोगों को निहारना, भक्ति भावना में डूबना, मनोरम दृश्य को देखना, और समीप तालाब के निकट लोगों मछलियों को दाना डालते देखना। यह सब इतना मनोरम था कि वह अनुभूति बयां कर पाना थोड़ा मुश्किल है।
अगर आप भी किसी ऐसे जगह की तलाश में है जो भीड़भाड़ से दूर एक शांति की अनुभूति देते है तो बैजनाथ आपका अगला गंतव्य हो सकता है।
अगर आपको इस मंदिर से किसी किसी अन्य तथ्य को बताना हो या कोई और जानकारी प्राप्त करनी हो तो अपने विचार नीचे टिप्पणी बॉक्स में लिखिए। हम आपके सुझावों से मिसफिट वांडरर्स को सुधारने का पूर्ण प्रयत्न करेंगे।
एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।
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