सन् 1968 में प्रकाशित एक खबर ने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया, लोग अचंभित हो गए। असल में उन दिनों लंदन के प्रसिद्ध रॉक बैंड “द बीटल्स” ने अपने संगीत से सम्पूर्ण विश्व में धूम मचा रखा था। उनके गाने हिट हो रहे थे, लाइव शो हाउसफुल हो रहे थे, उनका जादू लोगो के सिर चढ़कर बोल रहा था।
अपने करियर के ऊंचाइयों के समय अचानक बैंड ने कुछ महीनों के लिए ऋषिकेश स्थित चौरासी कुटिया (द बीटल्स आश्रम) जाने का निर्णय लिया। एक ऐसी जगह जिससे उस समय लोग बिल्कुल परिचित नहीं थे, और ना ही विश्व पटल पर यह शहर जाना माना पर्यटन स्थल था।
इस लेख में हम ऋषिकेश स्थित चौरासी कुटिया या द बीटल्स आश्रम से जुड़ी तमाम बातों का जिक्र करेंगे और बताएंगे कि आपको कब जाना चाहिए, क्यों जाना चाहिए और किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
ऋषिकेश में बीटल्स आश्रम: इनसाइड टूर एंड एक्सपेरिमेंटल ट्रैवल गाइड
100 से ज्यादा अंडाकार गुफाएं
टिकट लेने के पश्चात जैसे ही आप आगे ऊपर बढ़ेंगे तो आपकी नजर कुछ अंडाकार आकृतियों पर पड़ेगी जो आपके अंदर उत्सुकता पैदा करेगी। यह आकृतियां कुछ और नहीं बल्कि ध्यान लगाने के लिए बनाई गई ध्यान गुफाएं हैं। प्राकृतिक पत्थरों से बनाई गई यह गुफाएं दो मंजिला है जिनमे ऊपर जाने के लिए सीढियाँ हैं।
हर गुफा में बिजली, पानी और ध्यान लगाने के लिए कमरे बने हैं। इनको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दिनों लोग कैसे ध्यान लगाते होंगे। प्रत्येक गुफा के ऊपर गुफा संख्या लिखी हुई थी। हमें लगा कहीं इसी की वजह से तो इस आश्रम का नाम चौरासी कुटिया नहीं पड़ा। पर जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे, तो पाएंगे की ऐसी गुफाएं कुल 100 से भी ज्यादा हैं।
आनंद भवन और सिद्धि भवन
जहां पर ये गुफाएं खत्म होती हैं, वहां पर एक मंजिला इमारत दिखाई पड़ती है। बाहर लगे बोर्ड से प्रतीत होता है कि यह उस समय महर्षि महेश योगी जी का निवास स्थान हुआ करता था। अंदर दो बड़े कमरे, एक किचन, बरामदा और बाथरूम है। दीवारों पर कुछ चित्रकारी की गई है और सामने आप गंगा की बहती धारा को साफ़ सुन सकते हैं।
इसके समीप आपको दो बड़ी बड़ी इमारतें में दिखाई पड़ेगी, जो कि आनंद भवन और सिद्धि भवन है। यह दोनों भवन उन लोगों के लिए बनाए गए थे जो यहां पर साधना करने और ध्यान लगाने के लिए आते थे। एक लंबा गलियारा है कमरे बने हुए हैं।सभी कमरे एक समान है जिनमें बुनियादी जरूरत की चीजें मौजूद हैं। लेकिन मैं सबसे ज्यादा उत्सुक इसके ऊपर बने रंगीन अंडाकार गुफाओं को लेकर था।
चूंकि यह बहुमंजिला इमारतें हैं, आपको ऊपर जाने के लिए बहुत सारी सीढ़ियां चढ़नी पड़ेगी। लेकिन एक बार ऊपर पहुंच जाने पर जो नजारा आपको देखने को मिलेगा वह सारी थकान छूमंतर कर देगा। ऊपर से आप गुफाओं के साथ साथ बड़ी-बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं और ऋषिकेश शहर को देख सकते हैं। यह स्थान फोटोग्राफी के लिए आदर्श स्थान है।
वेद भवन
कुछ कदम बढ़ते ही मैंने एक इमारत के पास लोगों की भीड़ देखी जिससे मेरे मन में जिज्ञासा पैदा हो गई। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं उस इमारत की ओर बढ़ा। बाहर लगे बोर्ड बताता है कि यह वेद भवन है।
आपको बताते चलें कि यह बीटल्स आश्रम की सबसे ज्यादा घूमने जाने वाली इमारत है। अगर आप बीटल्स के फैन हैं तो सम्पूर्ण परिसर का यह स्थान आपको अवश्य ही घूमना चाहिए।
अंदर दीवार पर आपको महर्षि योगी जी के साथ बीटल के सभी सदस्यों का चित्र मनमोहक लगता है। साथ ही दीवारों पर भी की गई वॉल आर्ट और कोट्स आकर्षक लगते हैं। सामने की ओर एक ऊंचा स्टेज है जहां पर बैठ कर फोटो खिंचवाने के लिए होड़ लगी हुई थी। तो हम भी कहां पीछे रुकने वाले थे। मौका पाकर हमने भी दो-चार फोटो खिंचवा ही लिए। शायद यह भवन उस समय ध्यान लगाने और बीटल के प्रैक्टिस करने का स्थान हुआ करता था।
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प्रदर्शनी कक्ष और कैफ़े
वेद भवन की निकट ही प्रदर्शनी कक्ष और एक कैफ़े है। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर आप एक ठहराव लेना चाहते हैं या यह भूख लगी है, तो कैफे में जलपान कर सकते हैं।
बात अगर प्रदर्शनी कक्ष की करें तो इसमें कुल 3 कमरे हैं। पहले कमरे में अतींद्रिय ध्यान और महर्षि महेश योगी जी से जुड़े चित्र और प्रदर्शनी हैं, जबकि दूसरा कमरा बीटल्स को समर्पित है। इसमें बीटल के आश्रम में बिताए गए समय से जुड़े कुछ चित्र और उनके गानों का संकलन है।
तीसरा और आखिरी कमरा राजाजी नेशनल पार्क से जुड़े दस्तावेजों और जानवरों का परिचय देता है। दाहिनी ओर एक छोटा गार्डन है जिसमें आप बैठ कर कुछ देर आराम फरमा सकते हैं।
किचन और प्रिंटिंग प्रेस
अगला पड़ाव किचन और प्रिंटिंग प्रेस था। किचन का पूरा भवन जर्जर अवस्था में है और ऊपर की छत नदारद है। देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब यह आश्रम क्रियाशील रहा होगा तब यहां पर सभी लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती होगी।
इसी के निकट प्रिंटिंग प्रेस का बोर्ड है जो पूरी तरह से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां पर अतीन्द्रिय ध्यान से जुड़े लेखों का प्रकाशन होता था। इसके साथ ही यहां पर योगी जी की विश्व प्रसिद्ध किताब “साइंस ऑफ़ बीइंग आर्ट ऑफ़ लिविंग” का प्रकाशन हुआ था। श्रीमद्भगवद्गीता के पहले 6 चैप्टर पर योगी जी की टिप्पणियों का प्रकाशन भी यहीं पर किया गया था।
मेडिटेशन हॉल और चौरासी कुटिया
सम्पूर्ण परिसर के सबसे आखिर में मेडिटेशन हॉल और 84 कुटिया स्थित है। यह एक भवन है जिसमें कुल 84 छोटे-छोटे कमरे हैं जिसमें साधक ध्यान लगाते थे। असल में इन्हीं कुटिया के नाम पर इस आश्रम का नाम चौरासी कुटिया पड़ा। कमरे बहुत छोटे किंतु रोशनीदार और हवादार हैं। योग के 84 मुद्राओं पर आधारित इन चौरासी कुटिया का निर्माण किया गया था। इसको पार करते ही एक खुला प्रांगण है जो कि मेडिटेशन हॉल है। यहां पर एक साथ कई लोग मेडिटेशन कर सकते हैं।
बीटल्स के ऋषिकेश आने की वजह
द बीटल्स बैंड में 4 सदस्य थें जिनके नाम जॉन लेनन, पॉल मकार्टने, जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार है। जॉर्ज की पत्नी ने वेल्स में महर्षि महेश योगी जी के सेमिनार में हिस्सा लिया और उन्होंने जॉन को इसके बारे में बताया। जॉन की उत्सुकता ने बैंड के बाकि तीनों सदस्यों को भी योगी जी के सेमिनार तक पंहुचा दिया।
सेमिनार के दौरान वे योगी जी द्वारा सिखाये गए अतीन्द्रिय ध्यान (ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन) से बहुत प्रभावित हुए। इसी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन की कला सीखने के लिए उन्होंने ऋषिकेश जाने का निश्चय किया। सन 1968 में ये सभी अपनी तीन और पत्नियों/महिलामित्रों के साथ भारत आये।
अपनी यात्रा के दौरान वे इसी चौरासी कुटिया में ठहरे थे। उनके आने के पश्चात ही इस स्थान को ख्याति प्राप्त हुई और यह बीटल्स आश्रम के नाम से भी जाना जाने लगा। फिर क्या था, इस स्थान पर पर्यटकों का हुजूम आने लगा और योग के प्रचार प्रसार को और बल मिला।
बीटल्स ने आश्रम में कई हिट गाने बनाये
बीटल्स बैंड का मुख्य उद्देश्य ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन सीखना था। योग और ध्यान का यह समय उनके करियर के लिए एक वरदान साबित हुआ। ऋषिकेश में उन्होंने कई गानें रिकॉर्ड किये जिसे बाद में उन्होंने अपने एल्बम (द वाइट एल्बम) में सम्मिलित किया। ये गानें आगे चलकर काफी प्रसिद्द हुए। इनमे कुछ गानें Back in the U.S.S.R., Cry Baby Cry, Dear Prudence, Mother Nature’s Son, Ob-La-Di, Ob-La-Da, Sexy Sadie आदि हैं।
आश्रम के वातावरण में शांति, आध्यात्मिकता और सुकून था, जो संगीत बनाने के लिए अनुकूल था। यहाँ तक कि जॉर्ज हैरिसन ने मशहूर सितार वादक पंडित रवि शंकर जी से सितार बजाना भी सीखा। दोनों में काफी गहरी मित्रता भी हो गयी।
बीटल्स आश्रम या चौरासी कुटिया का इतिहास
महर्षि महेश योगी जी को अपनी ऋषिकेश यात्रा के दौरान गंगा किनारे का यह स्थान भा गया। उन्होंने उस समय उत्तर प्रदेश सरकार से यह भूमि 15 साल के लिए लीज पर लेने का आग्रह किया। सरकार से उनको वह भूमि 40 साल के लिए प्राप्त हो गया। बताते चले की यह स्थान राजाजी नेशनल पार्क का ही एक हिस्सा है।
अपने एक विदेशी अनुयायी के किये गए सहयोग से योगी जी ने इस स्थान का निर्माण कार्य करवाया। उस समय इसका नाम योगी जी ने इंटरनेशनल अकेडमी ऑफ़ मेडिटेशन रखा। निर्माण के बाद योगी जी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन का प्रचार प्रसार करने के लिए यूरोपीय देशो के दौड़े पर चले गए। उनका ज्यादातर समय विदेशो में योग की आध्यात्मिकता विश्व भर में पहुंचाने में व्यतीत होने लगा।
इसी बीच बीटल्स के साथ-साथ अन्य विदेशी पर्यटक कुछ समय तक स्थान का भ्रमण करने आते रहे। देखरेख और सञ्चालन की कमी होने के कारण धीरे-धीरे यह आश्रम वीरान होता गया। सभी इमारते खंडहर में बदलने लगी। सन 2000 के आसपास प्रसाशन ने इस जमीन को फिर अपने अधिकार में ले लिया और इसको पर्यटकों के लिए खोल दिया। तब से यह ऋषिकेश का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।
जिस ठाठ बाठ से यह बैंड भारत आया था, उससे प्रतीत हुआ की उनका ठहराव कुछ महीनो के लिए होगा। पर ऐसा हुआ नहीं, बैंड के दो सदस्य तो महज एक महीने के अंदर ही वापस लौट गए। रिंगो तो मात्र 10 दिन ही रुक पाए, उनके मुताबिक वे आश्रम में मच्छरों, कीड़ों और मकौड़ों से तंग आ गए थे। उनको आश्रम में परोसेजाने वाले मसालेदार भोजन भी पसंद नहीं आता था।
इनके बाद पॉल भी काम की वजह से वापस चले गए। बाकि बचे जॉन और जॉर्ज कुछ महीनों तक रुके और आश्रम के नियमित ध्यान कार्यक्रमों में भाग लेते और अपना संगीत भी बनाते थे। असल में उन सभी के भ्रमण का मुख्य कारण जॉर्ज को सपोर्ट करना था।
कुछ महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बातें
- समुद्र तल से एक ऊंचाई पर स्थित होने और एक बड़े क्षेत्र में फैला होने के कारण आपको बहुत चलना पड़ेगा।
- गर्मियों में जा रहे हैं तो पानी की बोतल साथ रखें और हल्के कपड़े पहने।
- यह राजाजी नेशनल पार्क का ही एक हिस्सा है तो बेहतर होगा कि आप सावधान रहें।
- अंदर एक कैफ़े है लेकिन खाने पीने के सीमित विकल्प हैं।
- पूरे आश्रम को घूमने के लिए कम से कम 2 घंटे की आवश्यकता होगी।
- भारतीयों के लिए टिकट ₹150 और विदेशी पर्यटकों के लिए 600 रुपए का टिकट है।
- यह रोजाना सुबह 9:00 बजे से शाम के 4:00 बजे तक खुलता है।
- परमार्थ आश्रम और राम झूले से इसकी दूरी महज 1 किलोमीटर है।
- आश्रम के शांत माहौल में आपको समय ध्यान भी लगा सकते हैं।
सामान्य रूप से पूछे जाने वाले सवाल
बीटल्स आश्रम को क्यों बाधित है?
आश्रम की जमीन महर्षि महेश योगी जी ने सरकार से लीज पर ली थी। योगी जी के विदेश में उपदेश देने के बाद लीज की अवधि समाप्त होने पर स्थानीय सरकार ने इसे अपने अधीन कर लिया। तब से इसे एक पर्यटक आकर्षण के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
बीटल्स आश्रम कैसे पहुँचें?
ऋषिकेश में स्थित बीटल्स आश्रम राम झूले से लगभग 1 किमी दूर है। वहां कोई सार्वजनिक वाहन नहीं जाता है, इसलिए आपको पैदल चलना होगा या निजी टैक्सी या कैब लेनी होगी।
बीटल्स आश्रम प्रवेश शुल्क कितना है?
अक्टूबर 2021 तक, भारतीयों के लिए प्रवेश शुल्क INR 150 है, और एक विदेशी के लिए INR 500 है।
बीटल्स आश्रम क्यों प्रसिद्ध है?
बीटल्स आश्रम उर्फ चौरासी कुटिया ने प्रसिद्ध अंग्रेजी रॉक बैंड, द बीटल्स के यहां ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन (टीएम) सीखने के बाद प्रसिद्धि प्राप्त की। उस समय, यह सबसे लोकप्रिय ध्यान केंद्रों में से एक था। आज, आप सुंदर कला देख सकते हैं, विरासत के बारे में जान सकते हैं, और ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन सीख सकते हैं।
समापन
अगर आप पहली बार जा रहे हैं तो आश्रम का शांत माहौल और प्राकृतिक सौंदर्य आपको बेहद प्रिय लगेगा। यहां की इमारतों की दीवारों पर किए गए वॉल आर्ट ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया। यहां की इमारतों की दीवारों पर जगह-जगह आपको मेडिटेशन, बीटल्स और कोर्ट्स अंकित किए हुए मिल जाएंगे। कहीं कहीं आप गंगा की मधुर धारा आपको रोमांचित कर देगी।
आप ध्यान में रुचि रखते हैं या नहीं, आपने बीटल्स के बारे में सुना है या नहीं, ऋषिकेश में बीटल्स आश्रम का दौरा करना उन शीर्ष गतिविधियों में से एक है जो आप यहां कर सकते हैं।
उम्मीद करता हूं इस लेख में मैंने बीटल्स आश्रम से जुड़ी हुई तमाम जानकारी को साझा करने का सफल प्रयास किया है। अगर फिर भी आपके मन में कोई सवाल या सुझाव आ रहा है तो आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय बता सकते हैं। हम आपके सुझाव और विचारों से खुद को और बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे।
एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत और दुनिया को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।