मुग़ल बादशाह अकबर के बारे में आप सब जानते होंगे। पर आप में से बहुत कम लोगों को पता होगा कि अकबर की कब्रगाह कहां है।
अकबर एक ऐसा शासक था जिसके बारे में हमें बचपन से पढ़ाया जा रहा है और उसके किस्से और कहानियां सुनाई जाती रही हैं। फिर चाहे, बीरबल की बुद्धिमानी की बात हो या फ़िर तानसेन के मल्हार, अकबर की हिन्दू पत्नी जोधा बाई की बात हो, या फिर अकबर द्वारा चलाए गए “दीन ए इलाही” की हो।
अकबर एक वीर योद्धा, सुलझा हुआ राजनीतिज्ञ और कुशल शासक था। यूं ही नहीं उसे “महान” होने की उपाधि प्राप्त हुई थी। अपने जीवनकाल में ही अकबर ने अपनी मृत्यु की जगह निर्धारित कर रखी थी और जो जगह चुनी वह सिकंदरा था।
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कहाँ है सिकंदरा?
फतेहपुर सीकरी और आगरा किला घूमने के बाद मैं आगरा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिकंदरा की खोज में चल पड़ा । यह वही स्थान है, जहां भारतीय इतिहास के एक महान शासक और मुग़ल बादशाह अकबर की कब्रगाह है।
यह स्थान कभी बिहिस्ताबाद के नाम से जाना जाता था, जो बाद में सिकंदरा के नाम से मशहूर हुआ। लोदी साम्राज्य के शासक सिकंदर लोदी के नाम पर इसका नाम सिकंदरा पड़ा।
लोदी मकबरा
खैर, सिकंदरा में प्रवेश करते ही मेरी नज़र सबसे पहले एक नष्ट हुए ढांचे पर पड़ी जिसका ऊपरी भाग का नामोनिशान तक मिट चुका है। मेरी आँखें भारतीय पुरातत्व विभाग के बोर्ड को ढूंढने लगी। चूंकि बोर्ड इमारत के लिए बने सीढ़ियों के बाईं ओर के बगीचे में थी, मुझे कटीले तारों को पार करके जाना पड़ा।
कहने को तो यह लोदी काल का मकबरा है। कोई पुख्ता सबूत ना मिलने के कारण इसको एक अनाम मकबरा भी बोला जाता है। जैसा कि मैंने अपने आगरा किले के लेख में बताया है कि सिकंदर लोदी पहला दिल्ली का सुल्तान था, जिसने अपनी राजधानी आगरा स्थानांतरित की थी, तो मेरे हिसाब से ये सिकंदर लोदी के शासन काल का मकबरा हो सकता है।
दिल्ली के लोदी बगीचे में सिकंदर लोधी का मकबरा है। अतः भ्रमित न हो यह लोधी के काल में बना था।
मकबरा एक ऊंचाई पर है, जिसको चढ़कर मैं ऊपर पहुंचा। देखने में मुख्य मकबरा की बनावट चौकोर प्रतीत होती है, पर इसके कोने कटे हुए हैं जिससे यह अब अष्टभुजा सा लगता है। बीचोबीच एक हॉल है, और चारों ओर चार कमरे जो बहुत ही खस्ता हालत में हैं।
दो कब्रों को भी देखा जा सकता है, जो किसकी है, पूर्णतया ज्ञात नहीं है। पास खड़ी एक महिला कर्मी बोली, यह लोदी महल है।
इसमें पत्थरों का कम प्रयोग है, और ऊपर से मोटा प्लास्टर किया गया है। चूने की पुताई भी हुई है। हो सकता है पुरातत्व विभाग ने इसका जीर्णोद्धार करवाया हो। इसका गुंबद तहस नहस हो चुका है। पर मैं इसको दिल्ली के कुछ गुंबदों से मिलता जुलता कह सकता हूं।
कांच महल
अकबर के मकबरे से पहले आपको एक और छोटे और आकर्षक महल से गुजरना पड़ेगा जो कांच महल है। 1605-1619 तक बने इस महल का प्रयोग जहांगीर अपने शिकारगाह के रूप में करता था और यह एक हरम अर्थात स्त्रियों का अवासगृह था।
चौकोर आकर का यह महल दोमंजिला इमारत है, जिसके ऊपर और नीचे की मंजिल पर बने कमरे एक समान श्रृंखला में निर्मित है। उपरी भाग पर सामने की ओर दो जालीदार झरोखे बाहर की ओर है और सामान ही झरोखे दाईं और बाईं ओर भी हैं।
फूलों, हाथियों और अन्य ज्यामितीय आकृतियों का क्रमबद्ध संयोजन इसकी खूबसूरती में वृद्धि करता है। दीवारों पर रूपकों और अभिप्रायों को लाल पत्थर पर बारीक लक्षण कला (महीन कारीगरी) से प्रदर्शित किया गया है।
गुंबदी छतों पर नीली, हरी, नारंगी के साथ-साथ नीले और पीले रंगों की खप्पर कला ( टाइल्स) का प्रयोग किया गया है, जो इसको चमकने में मदद करते हैं और इसी अलंकरण के कारण इसको कांच महल बोलते हैं।
अकबर के मकबरे का आलीशान प्रवेश द्वार
कांच महल से कुछ कदमों की दूरी तय करने के बाद मैं एक हलचल वाले स्थान पर पहुंचा, जहां लोगों का हुजूम लगा हुआ था। सभी लोग अकबर के मकबरे के विराट और आकर्षक प्रवेश द्वार के सामने अपनी तस्वीरें खींचने को बेताब थे। तो मैं भी कहां पीछे रहने वाला था। मौका पाकर दो-चार फोटो खिंचवा ही डाला। द्वार के सामने एक गोलाकार छोटा बगीचा है जिसकी घेराबंदी की गई है।
यह एक दोमंजिला इमारत है जिसके ऊपर सामने दो छोटी छतरियां है, जैसा राजपूत शैली में देखा जाता है। साथ ही ऊपर चारों किनारों पर चार मीनारें है, जो सफेद संगमरमर से निर्मित है। मीनारें मूल आधार का हिस्सा नहीं थीं, इन्हे बाद ने जोड़ा गया। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित और अलंकरण के लिए की गई महीन कारीगरी इसको और भी आकर्षक बनाती है।
एक समय के लिए अगर इसकी मीनारों को नजरंदाज किया जाए तो हूबहू किसी राजपूत शैली के प्रवेश द्वार के सामान ही प्रतीत होता है।
मैं इसमें हिन्दू धर्म का पवित्र स्वास्तिक का चिन्ह भी उकेरा हुआ देख सकता था। यह दर्शाता है कि अकबर के काल में सभी को अपने-अपने धर्म की मान्यताओं और पूजा पाठ करने का अधिकार दिया गया था।
अकबर का मकबरा
प्रवेश द्वार से घुसते ही एक चारबाग़ है, जिसके चारों छोर पर चार द्वार खुलते है, और बीचोबीच स्थित है, अकबर की कब्रगाह। एक चीज़ जिसने मुझे सबसे ज्यादा अचंभित किया कि इमारत में कोई गुंबद नहीं है, और ना ही मीनारें हैं। पहली नजर में कोई भी इसके मुग़ल वास्तुकला होने पर संदेह कर सकता है और यह लाजिमी भी है। क्योंकि चाहे कोई भी मुगल कालीन इमारत हो, आपको गुंबद देखने को अवश्य मिलता है।
खैर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए मेरी नजर दाहिनी और बाईं तरफ पड़ी, जहां कुछ मात्रा में हिरण और काले हिरण बैठे और यहां वहां भटक रहे थे। वास्तव में एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला नज़ारा था, जो मेरी आंखो को भा गया। आसपास बदरों के झुंड को भी आसानी से देखा जा सकता है।
अंदर चारबाग़ में किसी पर्यटक को जाने की इजाजत नहीं है। कब्रगाह के ठीक सामने एक फव्वारा लगा है जो अब बंद पड़ा है। वास्तुकला के नजरिए से ये मुग़ल और राजपूत वास्तुकला का मिश्रण प्रतीत होता है। ऊपर की छतरियां और सामने नारियल के क्रमबद्ध वृक्षों का संयोजन शानदार लगता है।
मुख्य मकबरे के अंदर ऊपर की ओर एक लैंप जंजीरों से लटका हुआ है, जो उस वक्त जगमगाता हुआ करता था। वैसे लैंप के अलावा आपकी नजर ज्यामितीय आकृतियों के साथ विभिन्न रंगों के संयोजन की ओर जाएगा जो आपको एक मिनट का समय लेकर निहारने को विवश कर देगी।
मैं सबसे पहले अंदर जाने की सोचा। अंदर जाने के लिए एक ढलान जैसे पथ नीचे तहखाने को ओर जाता है, जो मुझे किसी गुफा से कम नहीं लगा। अंदर बिल्कुल सामान्य तरीके से बीच में अकबर की कब्र है और अंदर एक व्यक्ति अकबर के कसीदे पढ़ रहा था।
कोई आलीशान नक्काशी नहीं, कोई शानदार कलाकृति नहीं। मेरा मस्तिष्क चकरा गया कि भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा शासक और उसकी कब्रगाह इतना सामान्य सा।
फिर मुझे ज्ञात हुआ कि सन् 1688 में भरतपुर के जाटों द्वारा राजा सिंह के नेतृत्व में हमला किया और कब्र के आसपास जड़ित सोने, चांदी, कवच और बेशकीमती जवाहरातों के प्लेटो को उखाड़ कर लूट ले गए। बाद में आए अंग्रेज़ गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
वापस आकर मैंने चारों ओर का भ्रमण करने का निश्चय किया। घूमते हुए मैंने कुछ अन्य कब्रें पाई जो शायद अकबर की बेटियों या बेगमों की रही होंगी। उत्तर दिशा का द्वार पूर्णतया नष्ट हो चुका है, और उसके आसपास का हिस्सा वीरान पड़ा है। उधर जाने की अनुमति नहीं है। एक जनाब उधर जाने को बढ़े तो सुरक्षाकर्मी ने बोला कि उधर का हिस्सा प्रतिबंधित है।
अकबर की मृत्यु और मकबरे का निर्माण
जैसा कि हम जानते है कि अकबर के बाद उसके पुत्र जहांगीर ने मुग़ल साम्राज्य को संभाला। इतिहास में वर्णित है कि जहांगीर एक टेढ़े दिमाग वाला व्यक्ति था जो अपने पिता अकबर को बहुत परेशान करता है। अकबर उसकी गलतियों पर पर्दा डालने में नहीं हिचकता था। पर 1591 में उसने अकबर को जहर देने की कोशिश की, पर बादशाह बच गए, फिर उसने 1601 में बगावत कर दी। उसका मकसद स्वयं राजा बनने का था।
पुत्र के आगे कोई कब तक लड़ता, और अंततः अकबर ने जहांगीर को अगला बादशाह घोषित कर दिया। उस दौरान अकबर बूढ़ा हो चला था और पेचिश की परेशानी से जूझ रहा था। सही इलाज ना होने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
कहा जाता है कि अकबर ने अपने जीवित रहते ही इस स्थान को एक मकबरे के लिए चुना और उसका निर्माण प्रारंभ भी करवा दिया, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद सारा आगरा और दिल्ली मातम में डूब गया। इसके साथ निर्माण कार्य भी प्रभवित हुआ।
जहांगीर पुनः सन् 1605 में निर्माण कार्य का जायजा लेने पहुंचा और कार्य की धीमी अवस्था ने उसे निराश किया। उसने नए कारीगरों को नियुक्त किया और 119 एकड़ में इसका निर्माण अपने हिसाब से करवाया। इसके निर्माण में 5-7 वर्ष लगे।
टिकट दर
भारतीय पर्यटक | ₹30 |
सार्क देशों के पर्यटक | ₹35 |
अन्य विदेशी पर्यटक | ₹310 |
कोरोनाकाल को देखते हुए टिकट काउंटर से टिकट नहीं दिए जा रहे हैं। आपको क्यूआर कोड स्कैन करके ऑनलाइन भुक्तान करना है और फिर आपको टिकट प्राप्त हो जाएगा।
नोट: आप चाहें तो गूगल प्ले स्टोर से मॉन्यूमेंट ऑफ आगरा नाम का iOS या Android एप लेकर आगरा और फतेहपुर सीकरी के सभी जगहों की टिकट ऑनलाइन बुक कर सकते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- सिकंदरा में अंदर कैमरा ले जाने की इजाज़त है और इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना है।
- अगर आप गर्मियों में जा रहे हैं तो पानी की बोतल साथ अवश्य रखें।
- कृपया मास्क पहनें और सामाजिक दूरी का पालन करें।
- चारबाग़ के अंदर जाने का प्रयत्न ना करें और जानवरों से उचित व्यवहार करें।
- इमारतों पर कुछ ना लिखें और इसको दूषित भी ना करें।
- आपको टिकट के अलावा अन्य कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना है।
- कुछ समय बैठकर चारों ओर के शांत वातावरण का आनंद लेना ना भूलें।
- चूंकि यह स्थान आगरा से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर है, आप एक दिन में आसानी से घूम सकते हैं।
समापन
जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो था वहां के माहौल में एक शांति की अनुभूति। मैं चिड़ियों की आवाज़, पत्तों को खनक और हवा की सरसराहट साफ सुन सकता था। मैंने चारों ओर से घूमकर एक जगह बनी पत्थर के बैठक पर विराजमान हो गया और खुद को शांति के वातावरण में खोने दिया।
बहुत ही कम लोग इस स्थान को घूमने को तवज्जो देते है, क्योंकि ज्यादातर पर्यटक ताजमहल के चकाचौंध में इसको नजरंदाज करते हैं। पर यह स्थान वाकई मे घूमने लायक है और आपको अपनी आगरा यात्रा में इसको अवश्य शामिल करना चाहिए।
उम्मीद करता हूं यह लेख आपको पसंद आया हो और मैं सभी जरूरी जानकारी देने में सक्षम रहा हूं। अगर फिर भी कोई चीज़ छूट गई हो या आप अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो नीचे टिप्पणी बॉक्स में बताएँ। हम खुद को और सुधारने का सम्पूर्ण प्रयत्न करने में तत्पर हैं।
एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।