गोकुल और गोवर्धन में घूमने की जगहें

क्या आप अपनी मथुरा-वृन्दावन यात्रा के दौरान उस गोवर्धन पर्वत के दर्शन नहीं करना चाहेंगे जिसे द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाया था? या फिर गोकुल का वो पवित्र गांव जहां प्रभु का बाल्यकाल बीता? गोकुल के नंद भवन में आज भी भगवान की किलकारियों को महसूस किया जा सकता है।

रमणरेती की पवित्र रेत जहां भगवान मित्रों के साथ खेलते थे, और वह स्थान जहां माता यशोदा ने बालकृष्ण के मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड देखा था। ये सभी स्थान गोकुल के इर्द-गिर्द हैं। अगर आप इन सभी जगहों की जानकारी की तलाश कर रहे हैं तो आप सही जगह पर हैं। 

यह लेख हमारे मथुरा वृदावन यात्रा का दूसरा भाग है। इसमें हम गोकुल गोवर्धन धाम की अपनी यात्रा और अनुभव को साझा करेंगे और साथ ही सभी घूमने वाली जगहों के बारे में बताएंगे।

तो चलिए हमारे साथ ब्रज धाम के पवित्र सरजमीं पर, जिसके कण-कण में भगवान श्री कृष्ण बसते हैं।

सर्वधर्मान्परित्यज्य   मामेकं   शरणं   व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।

सब धर्मों को त्यागकर एकमात्र मेरी ही शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम डरो मत।

पहला भाग पढ़ें: भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा-वृन्दावन में घूमने की जगहें



और आगे बढ़ने से पहले हम आपको बता दे कि अगर आपको यह जानकारी हिन्दी में चाहिए तो नीचे दी गई वीडियो को देखें:

गोकुल गोवर्धन में घूमने की जगहें

हम गोकुल गोवर्धन में यात्रा करने के लिए स्थानों को सूचीबद्ध कर रहे हैं, जिसे हमने व्यक्तिगत रूप से देखा। गोकुल, गोवर्धन और मथुरा को समझने के लिए निम्नलिखित मानचित्र पर गौर करें:

गोवर्धन पहुंचना

मथुरा से 22 किमी और वृन्दावन से 25 किमी की दूरी तय करके आप गोवर्धन पहुंच सकते हैं। हमने वृंदावन घूमने के पश्चात गोवर्धन की ओर रुख किया। हम इस पर्वत के गवाह बनना चाहते थे जिसको अपनी छोटी उंगली पर उठाकर भगवान ने सम्पूर्ण गांव के लोगो की रक्षा की थी।

झांकियों और मूवीज में तो कई बार यह देखा था, पर इसका असल में सरोकार करना एक अत्यंत सुखद और मनभावन अनुभव होगा। बस यही विचार मेरे मन में उमड़ रहा था, जैसे-जैसे हमारा वहां गंतव्य के करीब पहुंच रहा था। खैर छोटा सा सफर और हम पवित्र गोवर्धन की जमीन पर थे।

दान घाटी मंदिर का दर्शन

वहां उतरते ही मानो मेरे पैरों में पंख लग गए हो, जो रुकने का नाम ही नही ले रहे थे। तलाश थी बस मंजिल की जो की कुछ मीटर की दूरी पर थी। पदयात्रा करते हुए मैं एक मंदिर के निकट पहुंचा, जिसका नाम दानघाटी मंदिर है। पहली झलक में ही यह आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। इसमें उस दृश्य को दिखाया गया है, जहां मुरलीधर अपनी कानी (छोटी) उंगली पर पर्वत धारण किए हुए है, और उसके नीचे लोग, बच्चे और पशु आदि हैं।

दानघाटी मंदिर

जानकारी के लिए बता दूं कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा इस स्थान पर गिरिराज के रूप में होती है। मंदिर परिसर में कई और छोटे-छोटे मंदिर हैं, जहां प्रभु की पत्थर रूप में पूजा अर्चना की जाती है। मन में भक्ति भाव लिए मैंने दर्शन करने के उपरांत, मंदिर की दाहिनी ओर विराजमान गोवर्धन के पवित्र पर्वत की ओर बढ़ने को कदम उठाए। 

गोवर्धन पर्वत का सरोकार

वैसे जिनको नही पता उनको बता दूं कि दानघाटी मंदिर के दाहिनी ओर से ही गोवर्धन पर्वत की 21 किमी लंबी परिक्रमा आरंभ होती है। चूंकि हम परिक्रमा कर के उद्देश्य से नहीं आए थे, पर फिर भी मन में एक भावना जगी और परिक्रमा क्षेत्र पर कुछ दूरी तक चलते गए। 

मैंने यहां भक्तों के अंदर एक अलग सा भाव देखा, यहां तक कि छोटी उम्र के बच्चे भी परिक्रमा करने के लिए जोश से ओतप्रोत दिखाई दिए। सामान्य परिक्रमा, दूध परिक्रमा, दंडावत परिक्रमा, सोहनी सेवा परिक्रमा आदि कुछ परिक्रमाएं है, जो भक्त यहां करते हैं।

परिक्रमा की यात्रा को सुगम बनाने के लिए रास्ते भर में आपको फल, जूते, नाश्ता पानी के कई ठेले और दुकानें मिल जाएंगी। मुझे जो अनोखी बात दिखाई दी, वह यह है कि दुकानें भक्तों के लिए बंडल में सिक्के और पारले-जी बिस्कुट बेच रही थीं। आप कुछ स्ट्रीट वेंडर्स को हरी घास बेचते हुए भी देख सकते हैं, शायद गायों की परिक्रमा के दौरान आपकी सेवा करने के लिए थी।

बिस्कुट और सिक्के बेचते दुकानदार
हरी घास बेचते लोग

भगवान की भक्ति में इतना लीन होकर परिक्रमा करना शायद ही आप कही और देखने को पाएंगे । इसमें मेरे अंदर ऊर्जा का संचार किया। वर्तमान में पर्वत 21 फीट ऊंचा है, पर चौड़ाई अधिक है। आप यहां जगह-जगह पत्थरों को पूजा करते हुए भक्तों को देखेंगे। हर एक पत्थर को यहां राधा कृष्ण का परिदृश्य माना जाता है।

गोवर्धन पर्वत से जुड़ी किवदंती

द्वापर युग से जुड़ी किवदंती बताती है की श्रीकृष्ण नहीं चाहते थे कि ब्रज के लोग वर्षा के लिए इंद्रदेव की आराधना करें। उनका मानना था कि वर्षा करना इंद्रदेव का कर्तव्य है। इसके जवाब में इंद्र में लगातार 7 दिनों तक घनघोर वर्षा किया और सारा ब्रज पानी में डूब गया।

गोवर्धन पर्वत

लोगों को इस प्रकोप से सुरक्षित करने के लिए श्रीकृष्ण में अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और उसके नीचे आकर लोगों और पशुओं ने अपनी जान बचाई। अंत में जब इंद्र का घमंड टूटा और उनको अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने सब कुछ सही अवस्था में किया और प्रभु से छमा याचना भी की।

गोकुल में क्या घूमें?

गोकुल और उसके आसपास घूमने की तमाम जगहें हैं। अगर आपके पास एक दिन का पूर्ण समय है तो गोकुल का भ्रमण करना लाभकारी हो सकता है। इसमें मैं उन्हीं जगहों का वर्णन करूंगा जिनको मैंने स्वयं घूमा। मथुरा से गोकुल पहुंचने में मात्र आधे घंटे का समय लगता है।

सावधान! जैसे ही आप गोकुल पहुँचते हैं, आपको गोकुल गाँव का दौरा करवाने के लिए तैयार कई गाइड संपर्क करते हैं और पचास रुपये से भी कम में आपको गोकुल घूमने का प्रयत्न करते हैं, अतः हमारी सलाह यह है कि आप स्वयं ही जगहों का अवलोकन करें।

गोकुल की गलियां

चौरासी खंबा मंदिर (नंद भवन)

आप गोकुल में सबसे पहले वो स्थान देखना चाहेंगे जहां कभी बालकृष्ण की किलकारियां गूंजती थी। नंद भवन को चौरासी खंबा (84 खंबों वाला भवन) भी बोला जाता है। यहीं श्रीकृष्ण और उनके दाऊजी (बलराम जी) का नामकरण हुआ और इसी इमारत की आंगन में उनका बचपन बीता। यह गोकुल के प्रसिद्ध मंदिर में सबसे मुख्य है।

कुछ सीढियां चढ़कर आप मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचते हैं जो एक बरामदे की ओर खुलता है। अंदर की दीवारों पर प्रभु की बचपन की लीलाओं को चित्रकारी के माध्यम से दर्शाया गया है। साथ ही खंबे पर पत्थर की नक्काशी करके की गई कलाकृति आपका मन मोह लेगी। 

आंगन में आपको एक विशाल और धार्मिक महत्व वाला वृक्ष भी मिल जायेगा। लोग इसकी शाखाओं पर मन्नत का लाल धागा बांधते हैं। ऐसी मान्यता है की यहां पर मांगी गई मन्नत भगवान अवश्य ही सुनते हैं।

रमणरेती की पवित्र रेत

गोकुल से 2-3 किमी की दूरी पर स्थित रमणरेती का श्रद्धालुओं के बीच बड़ा ही महत्व है। मंदिर परिसर में हर तरफ रेत ही रेत है। जो भी भक्त यहां आता है वो इस रेत में बिना लोटे और खेले नहीं जाता है। और तो और कुछ लोग इस रेत को अपने साथ घर ले जाते हैं।

ऐसी मान्यता है की द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण बालरूप में थे, तब यशोदा माता उनको गायों को चराने हेतु वन में भेजती थीं। वो वन ही आज रमणरेती का स्थान है। भगवान श्री कृष्ण यहां आने बड़े भाई बलराम जी और अन्य ग्वालों के साथ खेलते थे।

इसको वर्तमान रूप देने का सम्पूर्ण श्रेय संत ज्ञानदास जी को जाता है, जिसको 18वीं शताब्दी में इस स्थान के महत्व को समझा और इसको भक्तों के लिए पूजा पाठ करने के लिए आकार दिया।

रमणरेती में साधु संतो की कुटिया
रमणरेती की रेत

इसके बगल में ही हिरण पार्क भी है जहां हिरण, सुतुरमुर्ग और बत्तखों को घूमते हुए पाया जा सकता है। आप यहां कई झोपड़ियां एक ही आकार की देखेंगे जो साधु संतों को समर्पित हैं। एक विचित्र बात यह भी है कि फाल्गुन मास में होली के दौरान रंगों के बजाय रेत से यहां होली खेली जाती है।

ब्रह्माण्ड घाट की किवदंती

रमणरेती से मात्र कुछ ही दूरी पर स्थित है ब्रह्माण्ड घाट। इस स्थान से जुड़ी एक बड़ी विचित्र किंवदंती है। आपको याद है ना, एक बार श्रीकृष्ण खेलते-खेलते मिट्टी भी खा गए। जब यह बात यशोदा माता तक पहुंची, वह दौड़ती हुई पुत्र को मात्र यह बताने आई कि मुंह खोलकर मिट्टी बाहर निकाल दे।

पर जो दृश्य उन्होंने देखा, उसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया और उनको पूर्ण विश्वास हो गया की उनका बालक कोई सामान्य बालक नही बल्कि मायावी है। असल में जब माता ने भगवान कृष्ण का मुंह खोला, तो उनके मुख में उन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड एक साथ देखा। 

ब्रह्मांड घाट

जिस स्थान पर यह घटना घटी, उस स्थान को आज ब्रह्मांड घाट के नाम से जाना जाता है। यमुना तट पर स्थित इस घाट को स्थानीय प्रशासन ने लाल बलुआ पत्थर से सवारकर नवनिर्मित सा कर दिया है। वर्तमान समय में यह बहुत सुंदर और आकर्षक प्रतीत होता है। नाव की सवारी का भी विकल्प मौजूद है।

पास में ही ब्रह्मांड बिहारी नामक मंदिर है जो प्रभु श्री कृष्ण को समर्पित है।

गोकुल के प्रसिद्ध मंदिर (अन्य)

श्री ठाकुर रानी घाट

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर यमुनाष्टकम (यमुना जी को समर्पित गीत) गाए जाने की उपरांत स्वयं यमुना माता ने श्री वल्लभाचार्य जी को दर्शन दिए थे। 

गोकुलनाथजी मंदिर

यह मंदिर भी भक्तों में काफी लोकप्रिय है। एक ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के पीछे मानसी गंगा नामक तालाब है। कथाओं के अनुसार, जब यशोदा माता ने गंगा में स्नान करने की इच्छा जताई तो प्रभु बोले कि जब वो गंगा को स्वयं यहां ला सकते हैं तो जाने की क्या जरूरत है। और कुछ इस प्रकार मानसी गंगा यहां आईं।

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु और सुझाव

  • वृंदावन और मथुरा से गोवर्धन जाना बहुत सुगम है, आप बस, ऑटो या कैब से जा सकते है।
  • अगर गोवर्धन परिक्रमा करना चाहते है तो सुबह जल्दी जाएं, चूंकि परिक्रमा 21 किमी की है, पूरी तैयारी करके जाएं।
  • मथुरा से गोकुल भी बस या टैक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
  • ध्यान रहे गोकुल से रमणरेती और ब्रह्मांड घाट तक जाने के लिए ऑटो बड़ी मुश्किल से मिलते है और मिलते भी है तो मोटा पैसा वसूलते हैं। तो अपने वाहन से जाना सबसे सरल होगा।
  • गोकुल घुमाने के लिए अपको कई गाइड मिल जायेंगे, ध्यान रखें की आप सही चुनाव करें।
  • वैसे तो घूमने के लिए सालभर जा सकते हैं पर गर्मियों में जाने की योजना बना रहे तो हल्के कपड़े और पानी की बोतल साथ रखें।
  • रमणरेती और ब्रह्मांड घाट पर कुछ समय शांति में बैठें और यह हुई चीज़ों को अपने जहन में फिर जीवित करें। भगवान की भक्ति में खुद को खो दें।
  • अगर आप होली के दौरान ब्रज घूमने का विचार कर रहे हैं तो यह अति उत्तम है क्योंकि ब्रज की होली देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है।

सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न

मथुरा से गोकुल कितनी दूर है?

मथुरा से गोकुल की दूरी मात्र 10 किमी है। यह सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अतः यहां पहुंचना काफी आसान है।

गोकुल किस लिए प्रसिद्ध है?

गोकुल वही स्थान है, जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया। यही पर स्थित चौरासी खंबा (नंद भवन) में उनका और बलराम जी का नामकरण हुआ था।

गोवर्धन परिक्रमा कितने किलोमीटर की है?

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कुल 21 किलोमीटर की है जिसको श्रद्धालु बड़े ही उत्साह के साथ करते हैं। इसको पूरा करने में समान्य रूप से 5-6 घंटे लगते हैं।

क्या रात में परिक्रमा करना सुरक्षित है?

हां बिलकुल। रात में भी परिक्रमा की जा सकती है जो तड़के सुबह समाप्त होगी। पर सलाह यही दी जाती है कि दिन में परिक्रमा की जाए।

क्या वृंदावन और गोकुल एक ही है?

जी नहीं। दोनों जगहें अलग अलग है। वृंदावन में श्री कृष्ण को समर्पित कई मंदिर हैं, वही गोकुल वह स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था।


समापन

क्या आपको याद है, जब भी कृष्ण लीला होती है तो हम बड़े ही लालायित आंखों से प्रभु को निहारते और पुचकारते है? फिर झांकी चाहे उनके बाल रूप में माखन मिश्री चुराकर खाने की हो, या गोपियों के साथ खेलने की, गायों को चराते समय बांसुरी की सुरीली धुन की हो, या उनके और सुदामा जी की मित्रता की। ये सभी झांकियां हमारे मन, आंख, हृदय और आत्मा में बसती हैं।

कोई भी व्यक्ति श्री कृष्ण की जीवन यात्रा से बहुत कुछ सीख सकता है। भगवान श्री कृष्ण के जीवनकाल से हमे प्रेम, त्याग, करुणा, दान, संयम, मित्रता जैसी अनेक गुण सीखने को मिलते हैं। और श्रीमदभगवद गीता में उनके और धनुर्धर अर्जुन के मध्य संवाद तो हमारे लिए जीवन मंत्र का कार्य करते है। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, जिसका निवारण भगवद्गीता में ना मिले।

सम्पूर्ण ब्रज भूमि (मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, बरसाना, गोकुल) में प्रभु विराजते हैं। यहां के प्रत्येक व्यक्ति और जीव-जंतु में ही नहीं अपितु सभी निर्जीव चीज़ों पर भी ठाकुर जी की कृपा बनी रहती है। हर जगह आप भगवान श्री कृष्ण की झलक देखेंगे। मेरी यह प्रथम ब्रज यात्रा थी, जहां मैंने उम्मीद से अधिक अच्छा समय बिताया।

उम्मीद करता हूँ यह लेख आपको अच्छा लगा होगा और दी गई जानकारी आपके अगले ब्रज यात्रा में मददगार होगी। यदि किसी पौराणिक कथा या किंवदंती में कोई तथ्य बताने में भूल हो गई हो तो हम उसके लिए छमाप्रार्थी हैं। अगर आपका कोई सुझाव या सलाह हो तो नीचे टिप्पणी बॉक्स में उसको साझा करें। हम खुद को और इस ब्लॉग को बेहतर बनाने की ओर लगातार प्रयासरत हैं।

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।

हे अर्जुन! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है। जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है।

जय श्रीकृष्ण।


एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।

Abhishek Singh
Abhishek Singh

मैं अभिषेक सिंह नवाबों के शहर लखनऊ से हूं। मैं एक कंटेंट राइटर के साथ-साथ डिजिटल मार्केटर भी हूं | मुझे खाना उतना ही पसंद है जितना मुझे यात्रा करना पसंद है। वर्तमान में, मैं अपने देश, भारत की विविध संस्कृति और विरासत की खोज कर रहा हूं। अपने खाली समय में, मैं नेटफ्लिक्स देखता हूं, किताबें पढ़ता हूं, कविताएं लिखता हूं, और खाना बनाता हूँ। मैं अपने यात्रा ब्लॉग मिसफिट वांडरर्स में अपने अनुभवों और सीखों को साझा करता हूं।

6 Comments

  1. बहुत उतकृष्ट जानकारी आपके लेख को पढ़ने से प्राप्त हुई। सदर आभार।

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