रूमी दरवाज़ा (रूमी गेट): लखनऊ की हस्ताक्षर ईमारत

हर शहर में एक ऐसी इमारत जरूर होती है, जो उस शहर का पहचान बन जाती है। अगर आप इतिहास में थोड़ी भी रुचि रखते है, तो नवाबों का शहर लखनऊ आपको तनिक भी निराश नहीं करेगा। यहां हर थोड़ी दूर पर नवाबी शानोशौकत की झलक ऐतिहासिक इमारतों में देखी जा सकती है। लखनऊ के चौक इलाके में स्थित रूमी दरवाज़ा इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। रूमी दरवाज़ा लखनऊ के सबसे जाने पहचाने इमारतों में से एक है। यह लखनऊ की हस्ताक्षर ईमारत है।



ऐतिहासिक इमारत  

60 फीट लंबा रूमी दरवाज़ा (स्थानीय भाषा से रूमी दरवाज़ा) लखनऊ के प्रवेश द्वार को चिह्नित करता है। यह भारत के सबसे ऊंचे क्लॉक टॉवर के बिल्कुल पास में स्थित है। यह अवध के चौथे नवाब – नवाब असफ-उद-दौला द्वारा 1784 में बनवाया गया था।इसकी रूपरेखा तय करने का पूरा श्रेय किफायत उल्लाह को जाता है, जिन्होंने बखूबी अपना काम निभाया और इतनी खूबसूरत इमारत के सपने को सच किया। उस समय इसकी बनावट की लागत लगभग एक करोड़ रुपए आयी। इस दरवाजे के पीछे कभी चहारदीवारी हुआ करती थी जिसमें उन अंग्रेज शहीदों की मजारें थीं, जो सन् 1857 की जंग में किला मच्छी भवन के मोर्चे पर मारे गए थे।

इससे पहले कि हम और अधिक अन्वेषण करना शुरू करें, आप नीचे से रूमी गेट की त्वरित झलक देख सकते हैं।

जगमगाता हुआ रूमी गेट

मनमोहक वास्तुशिल्प 

पहली नज़र में ही यह आपको लोभित कर देगा। इसकी बनावट में लाखौरी ईटो के साथ साथ बादामी चूने का प्रयोग किया गया है। इसमें किसी भी तरह के लोहे या ठोस आधार का उपयोग नहीं किया गया है। दोनों तरफ से आप इसकी आकृति में बहुत फर्क पाएंगे। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाजे की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है। इस गेट के ऊपर उस युग में एक लैम्‍प रखी जाती थी, जो रात के अंधेरे में रोशनी प्रदान करती थी। इसकी वजह से इसकी सुंदरता और भी लुभावनी हो जाती थी।

रूमी दरवाजे की सजावट बहुत निराली है। इसके बाहरी मेहराब को नागफनों से सजाया गया है। नागफनों के बीच से कमल फूलों की सजावट कतार में मिलती है। यह कतारें इसको और भी अधिक आकर्षित बनाती हैं। ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पर अब जाने के रास्ते बंद है। 

दरवाजे के दोनों तरफ तीन मंजिला हवादार परकोटा बना हुआ है, जिसके सिरे पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए हैं जिन पर गुंबद नहीं है। 

अकाल के दौरान बनाया जाना

नवाब असफ़ उद दौला के जीवनकाल में एक बार लखनऊ में भयंकर अकाल पड़ा। लोगो को दैनिक जीवन की जरूरतमंद चीज़ों के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। तब नवाब असफ उद दौला ने इमामबाड़ा के विस्तार के रूप में रूमी दरवाज़े का निर्माण करवाना शुरू किया। बता दें कि इसको बनवाने की मुख्य वजह लोगो को रोजगार देना था।

पीछे से रूमी गेट

इसकी वजह से उन दिनों 22000 लोगों को रोजगार का अवसर मिला और इस तरफ से अकाल को मात दी गई। 

लोग नवाब साहब से इतने प्रसन्न हुए की लोग हर समय नवाब असफ उद दौला का गुणगान करते थे। एक पंक्ति काफ़ी प्रसिद्ध हुई जो निम्न है –

जिसको ना दे मौला, 

उसको दे असफ उद दौला।

भारत का कॉन्स्टेंटिनोपल: तुर्कीस गेट 

रूमी दरवाज़ा की वजह से ही लखनऊ को अक्सर भारत के कॉन्स्टेंटिनोपल के रूप में जाना जाता है। इसके मेहराब और गुंबद में कॉन्स्टेंटिनोपल की झलक साफ़ देखने को मिलती है। वर्तमान समय कांस्टेंटिनोपल तुर्की में इस्तांबुल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रूमी दरवाज़ा तब के कांस्टेंटिनोपल के गेटवे की एक विस्तृत प्रतिकृति दर्शाता है। कॉन्स्टेंटिनोपल पूर्वी रोमन साम्राज्य (रोम) की राजधानी के रूप में जानी जाती थी, इसलिए इसको “रूमी” नाम दिया गया। कुछ लोग इसके नाम को प्रसिद्ध कवि “रूमी” से भी जोड़ते है। ये कितना सत्य है, इसकी पुष्टि हम नहीं करते हैं।

रूमी गेट का दृश्य

नाइटन अपनी किताब ‘प्राइवेट लाइफ ऑफ इन ईस्टर्न किंग’ में लिखा हैं कि टर्की के सुल्तान के दरबार का प्रवेश द्वार भी इसी मॉडल का था और इसीलिए आज तक योरोपियन इतिहासकार इसे ‘टर्किश गेट’ कहते हैं।

टिकट और भ्रमण का समय

यहां घूमने का कोई शुल्क या टिकट नहीं लगता है। आप यहां 24 घंटे घूम सकते हैं। पर मेरी सलाह में यदि आप शाम के समय घूमेंगे तो एक अलग अनुभव प्राप्त होगा।

कैसे हुआ इतना प्रसिद्ध

इस दरवाजे को प्रसिद्ध बनाने के लिए सबसे असल श्रद्धांजलि रसेल को दी जानी चाहिए, वह न्‍यूयार्क टाइम्‍स के संवाददाता थे और उन्‍होने ही 1858 में लखनऊ की छावनी को ब्रिटिश सेना के प्रविष्टि कवर पर छापा। उन्‍होने अपनी रिर्पोट में कहा था कि रूमी दरवाजा से छत्‍तर मंजिल तक का रास्‍ता सबसे खूबसूरत और शानदार है जो लंदन, रोम, पेरिस और कांस्‍टेंटिनोपल से भी बेहतर दिखता है।

नाइटन अपनी किताब ‘प्राइवेट लाइफ ऑफ इन ईस्टर्न किंग’ में इसके बारे में जिक्र किया है।

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु 

  • यहां आसपास शाम को काफ़ी अच्छा माहौल होता है, आप बच्चों के साथ सैर पर जा सकते हैं।
  • स्ट्रीट फूड की बहुत सारी दुकानें आदि स्थित है, जहां आप स्थानीय जायका का मज़ा उठा सकते है।
  • पीछे की तरफ पार्किंग की भी व्यवस्था है।
  • अपनी चीजों का खास ख्याल रखें ।
  • यह एक विरासत है, अतः आपसे अनुरोध है कि इसको साफ़ रखने में मदद करें।
  • बच्चे ऊंट सफारी और खिलौनों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
  • पास में लगी हुई बेंचो पर बैठकर, हसीन शाम का मज़ा उठाइए और निहारिए अपनी विरासत को।
  • आसपास टहलने का विकल्प है। शाम की ताज़ी हवा आपकी सारी थकान अवश्य मिटा देगी।
  • इसके विपरित कुछ कदम पर भारत का सबसे ऊंचा क्लॉक टॉवर, सतखंडा ( सात मंजिला ऐतिहासिक इमारत) और पिक्चर गैलरी है, आप वहां भी का सकते हैं।
  • शाम के समय यहां डूबते हुए सूरज को देखना एक यादगार पल होगा। डूबते हुए सूरज की लालिमा, आपका मन मोह लेगी।
  • 500 मीटर की दूरी पर कुडिया घाट है, जहां आप बोटिंग का मज़ा भी उठा सकते हैं।
  • यहां घूमने का कोई प्रवेश शुल्क या टिकट नहीं लगता है।

कुछ सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न

इसको रूमी दरवाज़ा क्यों बोलते है?

रूमी दरवाज़ा तब के कांस्टेंटिनोपल के गेटवे की एक विस्तृत प्रतिकृति दर्शाता है। कॉन्स्टेंटिनोपल पूर्वी रोमन साम्राज्य (रोम) की राजधानी के रूप में जानी जाती थी, इसलिए इसको “रूमी” नाम दिया गया।

क्या इसके लिए कोई प्रवेश शुल्क है?

नहीं। यहां घूमने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

यह लखनऊ के चौक में स्थित है?

चौक से इसकी दूरी 1 किमी है।

रूमी दरवाजा किसने बनवाया?

यह अवध के चौथे नवाब – नवाब असफ-उद-दौला द्वारा 1784 में बनवाया गया था।

रूमी गेट को टर्किस गेट क्यों बोला जाता है?

टर्की के सुल्तान के दरबार का प्रवेश द्वार भी इसी मॉडल का था और इसीलिए आज तक योरोपियन इतिहासकार इसे ‘टर्किश गेट’ कहते हैं।

रूमी गेट कैसे पहुंचे?

रेल मार्ग द्वारा

 लखनऊ के मुख्य स्टेशन लखनऊ जंक्शन, बादशाहनगर, गोमतीनगर है। सभी स्टेशन देश के सभी हिस्सों से जुड़े हुए है। आप देश के किसी भी कोने से यहां आसानी से पहुंच सकते है। स्टेशन से आप टैक्सी (ओला, उबर, रापिडो) के साथ साथ ऑटो, स्थानीय बस ले सकते है। कुछ मार्गों पर मेट्रो ट्रेन की भी सुविधा है।

हवाई मार्ग द्वारा

चौधरी चरण सिंह अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ( अमौसी एयरपोर्ट) लखनऊ का एकमात्र हवाईअड्डा है, जो देश के सभी हिस्सों से जुड़ा है। एयरपोर्ट से आप मेट्रो ट्रेन, बस, ऑटो, टैक्सी आदि की सहायता से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

रोड द्वारा

लखनऊ की दूरी देश की राजधानी दिल्ली से 500 किमी है। राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा यह शहर अन्य शहरों से भलि भांति जुड़ा हुआ है।


हमारा अनुभव

मुझे जब भी अपनी शाम यादगार बनाना होता है, तो मैं अपना 10 लीटर क्वेशुआ में आवश्यक चीज़े रखकर अपनी बाइक से चल पड़ता हूं। जितनी बार जाता हूं उतनी बार कुछ नया अनुभव करता हूं।

 इमारत के पास की जगमगाहट, पास लगे स्ट्रीट फूड के ठेले, चहल पहल, ठंडी हवा, ऊंट की सवारी करते हुए बच्चे, चाट का मजा उठाते हुए लोग आदि को देखकर मन प्रसन्नचित हो उठता है। 

मैं जितनी बार जाता हूं, खुद को तरोताजा और अन्दर से शांत पाता हूं। रूमी गेट के नजदीक गार्डन में बने पत्थर के बेंच की सतह पर बैठकर, आइसक्रीम खाते हुए इस इमारत को निहारना अपने आप के चैन प्रदान करता है।

शाम को रूमी दरवाज़ा

एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।


Abhishek Singh
Abhishek Singh

मैं अभिषेक सिंह नवाबों के शहर लखनऊ से हूं। मैं एक कंटेंट राइटर के साथ-साथ डिजिटल मार्केटर भी हूं | मुझे खाना उतना ही पसंद है जितना मुझे यात्रा करना पसंद है। वर्तमान में, मैं अपने देश, भारत की विविध संस्कृति और विरासत की खोज कर रहा हूं। अपने खाली समय में, मैं नेटफ्लिक्स देखता हूं, किताबें पढ़ता हूं, कविताएं लिखता हूं, और खाना बनाता हूँ। मैं अपने यात्रा ब्लॉग मिसफिट वांडरर्स में अपने अनुभवों और सीखों को साझा करता हूं।

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