क्या आपको पता है कि गौतम बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने के बाद अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय श्रावस्ती में बिताया?
इतना ही नहीं, तीसरे जैन तीर्थंकर शंभवनाथ जी का जन्म भी श्रावस्ती में हुआ था।
राप्ती नदी के किनारे पर बसा श्रावस्ती शहर, बौद्ध धर्म का एक धार्मिक स्थल है। भारत के साथ-साथ विश्व के अनेकों देशों से लोग हर साल यहां घूमने आते हैं।
इस लेख में हम आपको श्रावस्ती घूमने वाली जगहों के साथ-साथ यह भी बताएंगे कि आप यहां कैसे पहुंचें, कहां रुकें, कब जाएं आदि।
विषय सूची
- श्रावस्ती में घूमने की टॉप 7 जगहें
- श्रावस्ती के आसपास अन्य घूमने के विकल्प
- श्रावस्ती का गौरवपूर्ण इतिहास
- श्रावस्ती में गौतम बुद्ध ने बिताए कई वर्ष
- आकर्षणों के बीच दूरी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट
- कितने दिन और बजट की जरूरत होगी?
- श्रावस्ती घूमने का सही समय
- श्रावस्ती कैसे पहुंचें?
- श्रावस्ती में रुकने के विकल्प?
- कुछ महत्वपूर्ण यात्रा सुझाव
- सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
- समापन
सूचना: इस पोस्ट में कुछ लिंक हो सकते हैं। जब आप उनके माध्यम से कुछ खरीदते हैं या कोई बुकिंग करते हैं तो हमें वित्तीय सहायता मिलती हैं। वे किसी भी तरह से हमारी राय या यहां प्रस्तुत जानकारी को प्रभावित नहीं करते हैं।
श्रावस्ती में घूमने की टॉप 7 जगहें
यूं तो श्रावस्ती की सारी धरती ही पावन भूमि है, फिर भी हम आपको अब श्रावस्ती में घूमने वाले 7 जगहों के बारे में बताएंगे जो आपको अवश्य ही घूमना चाहिए।
जेटवन मोनेस्ट्री
जेटवन मोनेस्ट्री की स्थापना अनाथपिंडक द्वारा की गई थी। राजगीर के बेलुवन के बाद जेटवन विहार भगवान बुद्ध को दान दिए जाने वाली दूसरी मोनेस्ट्री बनी।
एक बड़े हिस्से में फैले इस मोनेस्ट्री को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राचीन समय में यह कितनी भव्य रही होगी। अंदर एक अन्य स्थान है जिसको गंधकुटी बोलते हैं। माना जाता है कि यह भगवान बुद्ध का निवास स्थान था।
![जेटवन मोनेस्ट्री श्रावस्ती](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Jetavana-Monastery-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
अनाथपिंडक ने इस परिसर में एक पीपल का वृक्ष लगाया, जिसे आनंद बोधि वृक्ष कहा जाता है। इसका उद्देश्य था कि जब भगवान बुद्ध श्रावस्ती में न हो तो उपासक इस वृक्ष की पूजा आराधना करें।
समय: सुबह 9 बजे – शाम 5 बजे तक।
प्रवेश : भारतीयों के लिए 25₹, विदेशी पर्यटकों के लिए 300₹।
कच्ची कुटी या अनाथपिंडक स्तूप
जेटवन के निकट स्थित अनाथपिंडक स्तूप को माहेत इलाके में खुदाई के दौरान पाया गया था। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण स्वयं अनाथपिंडक द्वारा भगवान बुद्ध के निवास स्थान के रूप में किया गया था।
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Kachi-Kuti-or-Anathapindika-Stupa-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
यह बौद्ध स्तूप की पारंपरिक शैली में निर्मित है। संरचनात्मक अवशेषों से पता चलता है कि यह दूसरी शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक अस्तित्व में रहा।
स्तूप के अवशेषों में केवल एक चबूतरा और स्तूप तक जाने वाली सीढ़ियाँ मौजूद हैं। हालांकि खंडहर में, स्मारक अपनी शानदार नक्काशी और वास्तुकला के कारण इतिहासकारों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
पक्की कुटी या अंगुलिमाल स्तूप
आपने बचपन में अंगुलिमाल नाम के डाकू की कहानी जरूर सुनी होगी। वह यहीं श्रावस्ती के निकट जंगल में रहता था और जंगल जाने वाले लोगों की उंगली काटकर अपनी माला में पिरो लेता था। उसके बाद उस माला को अपने गले में धारण करता था।
यहीं पर अंगुलिमाल को भगवान बुद्ध ने दर्शन दिया और उपदेश दिया। उनके धर्मोपदेश से वो बहुत प्रभावित हुआ और हिंसा त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलने लगा। कच्ची कुटी के निकट ही यह स्तूप भी स्थित है।
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Pukki-Kuti-or-Angulimal-Stupa-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
चीनी यात्री फा-हिएन, विद्वान ह्वेन त्सांग और अलेक्जेंडर कनिंघम (ब्रिटिश इंजीनियर) ने इसे खंडहर को अंगुलिमाल स्तूप बताया। वहीं कई विद्वान का मानना है कि इसको प्रसेनजीत ने बुद्ध जी के सम्मान में बनवाया।
यह देखने में एक आयताकार चबूतरे पर बना सीढ़ीनुमा स्तूप लगता है। अवशेषों में महज कुछ दीवारें, चबूतरा और सीढ़ियां बची हैं।
विपश्यना ध्यान केंद्र
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Vipassana-Meditation-Center-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
विपश्यना ध्यान केंद्र या विपश्यना मेडिटेशन सेंटर विश्व भर में फैला हुआ है। यह एक स्थान है जहां लोगों को निःशुल्क विपश्यना ध्यान सिखाया जाता है। आप यहां कुछ दिन रहकर ध्यान सीखकर अपने जीवन को और भी बेहतर बना सकते है।
इसकी दूरी सभी घूमने वाली जगहों से एक किलोमीटर मात्र है।
विश्व शांति घंटा पार्क
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/World-Peace-Bell-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
विश्व शांति घंटा पार्क श्रावस्ती में स्थित एक अन्य पर्यटन स्थल है। इस स्थान की महत्ता को जानते हुए सरकार द्वारा सन 1981 में इस उद्यान और घंटे की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य विश्व में शांति की कामना और स्थापना करना है।
समय: सुबह 9 बजे – शाम 5 बजे तक।
प्रवेश: बिना किसी शुल्क के।
शंभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर
श्रावस्ती जितना बौद्ध धर्म के लिए पावन है, उतना भी जैन धर्म के लिए भी। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ जी का जन्म यहीं हुआ था। इतना ही नहीं उन्होंने अपना पहला प्रवचन (दिव्य ध्वमी ) भी इसी जगह दिया।
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Sambhavnath-Digambar-Jain-Temple-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
यहां अंदर अपनी कई जैन धर्म के लोग मिलेंगे। अंदर जाते ही दाहिनी ओर एक मंदिर है को संभवनाथ जी को समर्पित है। इसके अलावा यहां अंदर एक अन्य मंदिर को बनाने का कार्य प्रगति पर है।
समय: सुबह 9 बजे – शाम 5 बजे तक।
म्यांमार मोनेस्ट्री और कोरियन मंदिर
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/Myanmar-Monastery-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
म्यांमार मोनेस्ट्री और कोरियन मंदिर एक दूसरे के पास में स्थित हैं। दोनों परिसरों में शांति के प्रतीक के रूप में घंटे लगे हुए है। म्यांमार मोनेस्ट्री में सामने की ओर एक बड़े हिस्से में बगीचा है। बगीचे पार करने के बाद आप मोनेस्ट्री में पहुंचते हैं। वहीं कोरियन मंदिर की दीवारों पर जीवन से संबंधित कई श्लोक और कोट्स लिखे हुए है जो प्रेरणाश्रोत की तरह कार्य करते हैं।
श्रावस्ती के आसपास अन्य घूमने के विकल्प
इसके अलावा भी श्रावस्ती में अन्य घूमने की जगहें है, जिनको नीचे बताया जा रहा है।
- थाई बुद्ध मंदिर या महामोंगकोल इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर
- सुहेलदेव वाइल्डलाइफ सेंचुरी
- विभूतिनाथ मंदिर
- शोभनाथ जैन मंदिर
- ओराझर बुद्धिस्ट साइट
श्रावस्ती का गौरवपूर्ण इतिहास
बौद्ध धर्म के अनुसार श्रावस्ती को सावत्थी नाम से जाना जाता था। राप्ती नदी के किनारे बसे इस शहर का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और किताबों में किया गया है। किसी समय यह प्रसिद्ध कौशल प्रदेश की राजधानी हुआ करती है।
भगवान बुद्ध के समय में यह भारत के छह बड़े शहरों में से एक था। बौद्ध कथाओं के अनुसार यहां तपस्या करने वाले ऋषि सावथ के नाम पर इसका नाम पड़ा।
वहीं पुराणों के अनुसार एक सूर्यवंशी राजा के पुत्र श्रवस्त के नाम पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ा। इसके अलावा रामायण के अनुसार भगवान राम ने अपने पुत्र लव को उत्तर कौशल का राजा बनाया जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। खैर, हम किसी भी मान्यता की पुष्टि नहीं करते हैं।
1863 को खुदाई में यहां बहुत से स्तूप, मंदिर, मूर्तियां, सिक्के, और बौद्ध विहार मिले। इन्ही के आधार पर ही इतिहासकारों ने सहेट के क्षेत्र को जेटवन और महेट के क्षेत्र को श्रावस्ती माना है।
आसान शब्दों में कहें तो आज का “सहेत-महेत” गाँव ही “श्रावस्ती” है। साथ ही सम्पूर्ण खुदाई वाले इलाके को सहेत महेत आर्कियोलॉजिकल साइट के नाम से जाना जाता है।
श्रावस्ती में गौतम बुद्ध ने बिताए कई वर्ष
भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने के बाद अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय श्रावस्ती में ही बिताया। असल में उस समय श्रावस्ती का एक व्यापारी अनाथपिंडक भगवान बुद्ध के उपदेशों से इतना प्रभावित हुआ कि उनको श्रावस्ती आने का निमंत्रण दे दिया। भगवान बुद्ध ने इसको स्वीकार किया और कुशीनगर में परिनिर्वाण प्राप्त करने से पहले अपना ज्यादातर वक़्त यहीं बिताया।
उसने एक बड़े भूमि को राजकुमार जेट से खरीदा और यहां पर एक मोनेस्ट्री की स्थापना की। इसी जगह भगवान बुद्ध ने अपने जीवन 25 बार वर्षा ऋतु के दौरान निवास किया। श्रावस्ती के दो मुख्य मोनेस्ट्री जेटवन और पुब्बाराम है।
बौद्ध धर्म के चार निकायों में से 871 सूत्तों(निर्देश/उपदेश) श्रावस्ती में दिए गए। भगवान बुद्ध ने इन निर्देशों को जेटवन और पुब्बाराम में बताया।
इसके अलावा श्रावस्ती को जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण माना गया है। यहां स्थित शोभनाथ मंदिर को जैन धर्म के तीर्थंकर संभवनाथ जी का जन्मस्थान माना जाता है।
आकर्षणों के बीच दूरी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट
सबसे अच्छी बात यह है कि श्रावस्ती के सभी मुख्य घूमने वाली जगहें महज 3-4 किमी की परिधि में स्थित हैं। आप टैक्सी बुक करके एक साथ सब घूम सकते हैं। हालांकि टैक्सी थोड़ी महंगी पड़ सकती हैं। इसके अलावा आप ऑटो रिक्शा, या साइकिल रिक्शा ले सकते हैं, जो आपको सस्ता पड़ेगा।
अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जो कुछ किमी दूरी पैदल तय करने में सक्षम हैं तो सबसे बेहतरीन विकल्प पदयात्रा ही है।
कितने दिन और बजट की जरूरत होगी?
दिनो की संख्या
अगर आप शहर के सभी पर्यटन स्थलों को गहराई से जानना और समझना चाहते हैं तो आपको कम से कम दो दिन की आवश्यकता होगी। ऐसे में आपको यहां एक दिन रुकना पड़ेगा।
यदि आप लखनऊ से सुबह जल्दी पहुंचते हैं तो शाम तक सभी जगहों को आराम घूम सकते हैं।
बजट
सभी के लिए बजट अलग-अलग हो सकता है। यह प्रायः इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन सा होटल लेते है, क्या खाते-पीते है और क्या खरीददारी करते हैं। फिर भी एक सामान्य बजट निम्नवत है:
- एक दिन के लिए: ₹2000
- दो दिन के लिए: ₹3000
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/A-Buddhist-Stupa-in-Shravasti-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
श्रावस्ती घूमने का सही समय
श्रावस्ती घूमने का सही समय अक्टूबर से मार्च तक का है। सर्दी के इन महीनों में तापमान कम रहता है और मौसम भी सुहावना रहता है। गर्मियों (अप्रैल से जून) तक का समय दुर्लभ है तो इस समय आने से बचें। हालांकि आप बरसात के मौसम (जुलाई से सितंबर) तक भी आ सकते है।
श्रावस्ती कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग द्वारा:
श्रावस्ती का सबसे निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ में स्थित चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा श्रावस्ती शहर से 180 किमी दूरी पर स्थित है। यहां से आप बस या टैक्सी बुक करके सीधे श्रावस्ती पहुंच सकते है। लखनऊ से यहां पहुंचने में लगभग 4 घंटे लगते हैं।
रोड द्वारा:
अपने निजी वाहन से आप आसानी से श्रावस्ती पहुँच सकते हैं। सड़क की स्थित काफी अच्छी है। उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग द्वारा लखनऊ, गोरखपुर, अयोध्या आदि से नियमित रूप से बसों का संचालन होता है।
नोट: अगर आपको श्रावस्ती के लिए सीधे बस नहीं मिल रही है तो या तो आप गोंडा को बस ले या बहराइच की। दोनों जगहों से ऑटो या टैक्सी लेकर भी श्रावस्ती पहुंच सकते है। नीचे रूट देखें:
लखनऊ – बहराइच – श्रावस्ती
लखनऊ – गोंडा – श्रावस्ती
रेल द्वारा:
श्रावस्ती के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन बलरामपुर रेलवे स्टेशन है जो श्रावस्ती से 17 किमी की दूरी पर है। हालांकि यहां ज्यादा ट्रेन नहीं रुकती हैं। श्रावस्ती से 50 किमी की दूरी पर स्थित गोंडा जंक्शन रेलवे स्टेशन एक बड़ा रेलवे स्टेशन है जहां प्रमुख शहरों के लिए लगातार ट्रेनें उपलब्ध हैं। गोंडा से आप पुनः टैक्सी या ऑटो से श्रावस्ती पहुंचें।
श्रावस्ती में रुकने के विकल्प
सस्ते होटलों से लेकर महंगे 3 सितारा होटल तक के विकल्प यहां मौजूद हैं। आप अपनी सुविधा और बजट के अनुसार होटल का चयन कर सकते हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश टूरिज्म का राही टूरिस्ट बंगलो भी घूमने वाली जगहों के निकट स्थित है।
कुछ महत्वपूर्ण यात्रा सुझाव
- गर्मियों में जाने का विचार बना रहे हैं तो हल्के कपड़े और पानी की बोतल अवश्य साथ रखें।
- खाने के जगहों के सीमित विकल्प हैं। ज्यादातर आपको ढाबे या कुछ रेस्टोरेंट मिलेंगे।
- जेटवन और अन्य पर्यटन स्थलों के आसपास मौजूद कुछ दुकानें हैं जहां से आप बौद्ध धर्म से जुड़ी पूजा की चीजें (बुद्ध की प्रतिमाएं, प्रेयर व्हील, बुद्धिस्ट झंडे और पुस्तकें) आदि खरीद सकते है।
- हर साल जनवरी के महीने में श्रावस्ती महोत्सव का आयोजन होता है। इसके अलावा बुद्ध पूर्णिमा, भगवान संभवनाथ जयंती आदि कुछ अन्य त्योहार हैं जिनमें आप शामिल हो सकते हैं।
- आप यहां पर नियमित रूप से आयोजित होने वाले प्रवचनों और उपदेशों में शामिल हो सकते हैं।
- श्रावस्ती के सभी पर्यटन स्थलों पर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की अनुमति है। इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना है।
![](https://misfitwanderers.com/wp-content/uploads/2022/05/A-Buddhist-structure-with-Ashoka-Chakra-Shravasti-Tourist-Places.jpg)
सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न
श्रावस्ती क्यों प्रसिद्ध है?
श्रावस्ती एक प्राचीन शहर है जहां भगवान बुद्ध में अपने जीवन के 25 वर्षा ऋतुओं तक निवास किया। यहां पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई प्राचीन खंडहर प्राप्त हुए हैं।
श्रावस्ती में घूमने की जगहें कौन सी हैं?
एक मुख्य पर्यटन स्थल होने के नाते यहां घूमने के कई स्थल हैं। इनमें जेटवन मोनेस्ट्री, कच्ची कुटी, पक्की कुटी, विश्व शांति घंटा पार्क, विपश्यना ध्यान केंद्र, शंभवनाथ जैन मंदिर, और कई अन्य मोनेस्ट्री हैं।
जेटवन विहार कहां स्थित है?
जेटवन विहार उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में स्थित है। यही वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने के बाद सबसे ज्यादा समय बिताया।
श्रावस्ती का इतिहास क्या है?
राप्ती नदी के किनारे पर बसा श्रावस्ती का इतिहास बहुत पुराना है। यह कौशल प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में यहां कई वर्ष बिताए।
समापन
यह श्रावस्ती के पावन धरती से जुड़ी हमारी यात्रा निर्देशिका है। उम्मीद है इसमें श्रावस्ती से जुड़ी हर एक छोटी से छोटी जानकारी को साझा करने में सफल रहे हैं।
फिर भी यदि आपके कोई सुझाव या सवाल हैं, तो आप बेझिझक नीचे कमेंट बॉक्स में अपने विचार व्यक्त करें। हम आपके सुझावों से खुद को और बेहतर बनाने का प्रयत्न करेंगे।
एक अपील: कृपया कूड़े को इधर-उधर न फेंके। डस्टबिन का उपयोग करें और यदि आपको डस्टबिन नहीं मिल रहा है, तो कचरे को अपने साथ ले जाएं और जहां कूड़ेदान दिखाई दे, वहां फेंक दें। आपकी छोटी सी पहल भारत और दुनिया को स्वच्छ और हरा-भरा बना सकता है।
Thank you very much for information
Your appreciation means a lot.